किसी भी रोग की दवा से लेकर रसायनों के मिश्रण से तैयार हर वह पदार्थ हमेशा ही संबंधित एजंसियों की निगरानी के दायरे में होना चाहिए, जो इंसानी सेहत के लिए जोखिम का कारक बन सकते हैं। हालांकि सरकार के मातहत इसके लिए बाकायदा एक तंत्र है, लेकिन इसके बावजूद बाजार में ऐसी दवाओं और सौंदर्य प्रसाधनों की बिक्री खुलेआम होती रहती है, जिनके उपयोग के बाद स्वास्थ्य कई तरह के जोखिम के दायरे में आ जाता है।
ऐसा नहीं है कि इस तरह के खतरनाक रसायनों के इस्तेमाल पर रोक के लिए कानून नहीं हैं, लेकिन या तो वे अपर्याप्त हैं या फिर उन्हें सख्ती से लागू करने को लेकर सरकारी एजंसियों के भीतर कोई इच्छाशक्ति नहीं है। यह बेवजह नहीं है कि ऐसी दवाओं और सौंदर्य प्रसाधनों के इस्तेमाल से कई बार नाहक ही लोगों की मौत होने या स्वास्थ्य को गंभीर नुकसान पहुंचने की खबरें आती रहती हैं।
यों तो सरकार को इससे संबंधित नियम-कायदों को पहले ही सख्ती से लागू करना चाहिए था, लेकिन अब नए सिरे से नकली या जोखिम का वाहक बनने वाली दवाओं और नुकसानदेह सौंदर्य प्रसाधनों पर नकेल कसने की तैयारी हो रही है।
दरअसल, हाल ही में कुछ राज्यों में खांसी की दवा पीने से कई बच्चों की मौत की खबरें आईं और इससे हर तरफ चिंता पैदा हुई। अब केंद्र सरकार दवाओं और सौंदर्य प्रसाधनों की सख्त गुणवत्ता जांच और निगरानी के लिए कानून लाने जा रही है। इस संबंध में ‘औषधि, चिकित्सा उपकरण और सौंदर्य प्रसाधन अधिनियम, 2025’ का मसविदा संसद के आगामी सत्र में पेश किया जा सकता है। देश भर में आए दिन नकली दवाओं की बिक्री और उससे पैदा खतरों को लेकर सवाल उठते रहते हैं।
अगर कभी कोई मामला तूल पकड़ लेता है, तब थोड़ी सख्ती और कार्रवाई होती दिखती है। मगर आमतौर पर कार्रवाई के दायरे में निचले स्तर के कुछ कर्मचारी या अधिकारी ही आते हैं। मामला शांत होने के बाद फिर दवाओं के निर्माण को लेकर गुणवत्ता और तय कसौटियों में व्यापक लापरवाही बदस्तूर जारी रहती है।
इसी के मद्देनजर विश्व स्वास्थ्य संगठन के साथ-साथ विश्व भर के कई बड़े स्वास्थ्य नियामकों की ओर से भारतीय दवा निर्माताओं की गुणवत्ता संबंधी गंभीर खामियों को लेकर बार-बार शिकायतें और चिंता दर्ज कराई गई। मगर ऐसा लगता है भारत में सरकार और दवा कंपनियों की नींद तब तक नहीं खुलती, जब तक कोई बड़ा नुकसान नहीं हो जाता और कुछ लोगों की जान नहीं चली जाती। ऐसी दवाओं के बारे में भी खबरें आती रहती हैं, जो दूसरे कुछ देशों में प्रतिबंधित होती हैं, लेकिन यहां वे धड़ल्ले से चिकित्सकों के परामर्श तक में शामिल दिख जाती हैं।
इसी तरह, सौंदर्य प्रसाधनों में कई ऐसे हैं, जिनमें हानिकारक रसायन मिले होते हैं और वे दीर्घकालिक तौर पर शरीर या इसके खास हिस्से को गंभीर नुकसान पहुंचा सकते हैं। मगर बिना किसी निगरानी और जांच-परख के नकली दवाओं से लेकर सौंदर्य प्रसाधनों के उत्पाद खुले बाजार में खरीदे-बेचे जाते रहते हैं। दूसरी ओर, लोगों के बीच भी अपने स्तर पर किसी उत्पाद या दवा की जांच कराने की सुविधा से लेकर अपेक्षित जागरूकता का अभाव देखा जाता है।
अब यह देखने की बात होगी कि इस संबंध में प्रस्तावित कानून किस रूप में सामने आता है और सरकार के संबंधित महकमे जोखिम का वाहक बनने वाली दवाओं और सौंदर्य प्रसाधनों की बिक्री और उत्पादन पर रोक लगाने के लिए कैसी इच्छाशक्ति के साथ काम करते हैं।