अमेरिका ने जब अपनी शुल्क नीति की घोषणा की, तो उसका मकसद जितना अपने आर्थिक हित सुनिश्चित करना था, उससे ज्यादा इसे प्रभावित होने वाले देशों पर दबाव बनाने के तौर पर देखा गया। सवाल है कि क्या अमेरिका की ओर से पहले पच्चीस और फिर पचास फीसद तक शुल्क लगाने की घोषणा का कारण यह था कि व्यापार वार्ता में भारत को अपनी शर्तों पर सहमत किया जाए? यह बेवजह नहीं है कि भारत ने अमेरिका के इस रवैये के सामने समर्पण करने के बजाय विकल्प की राह तैयार करने की कोशिश शुरू कर दी और अब इसके नतीजे सामने आने लगे हैं।
गौरतलब है कि रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने शुक्रवार को अपनी सरकार को निर्देश दिया कि वह कच्चे तेल के भारी आयात की वजह से भारत के साथ व्यापार असंतुलन को कम करने के लिए तत्काल उपाय करे। अमल के स्तर पर यह फैसला भारत से अधिक कृषि उत्पाद और दवाओं की खरीद के स्तर पर सामने आ सकता है। इस वर्ष के आखिर में पुतिन की प्रस्तावित भारत यात्रा के मद्देनजर उनके इस निर्देश की अहमियत समझी जा सकती है।
दरअसल, अमेरिका ने न केवल शुल्क नीति की घोषणा की, बल्कि भारत पर दबाव बढ़ाने की मंशा से रूस से तेल आयात करने पर जुर्माना लगाने की भी बात कही। इसका आशय साफ था कि भारत रूस से तेल खरीदना बंद करे। इसके पीछे उद्देश्य चाहे जो हो, आज बहुध्रुवीय होते विश्व में इस तरह भारत जैसे एक संप्रभु और वैश्विक साख वाले देश को अपनी शर्तों पर संचालित कर पाना संभव नहीं हो सकता। यह विचित्र है कि अमेरिका ने इस मसले पर सहयोग और साझेदारी को केंद्र में रख कर नए विकल्प निकालने, द्विपक्षीय हित और सम्मान आधारित आर्थिक संबंध पर विचार करने का रास्ता अख्तियार न करके, दबाव की रणनीति का सहारा लिया।
मगर यूक्रेन और रूस के बीच युद्ध के संदर्भ में अमेरिका और नाटो देशों की ओर से रूस को अलग-थलग करने के लिए जो रणनीति अपनाई जा रही थी, भारत ने प्रकारांतर से उसमें शामिल होने या किसी के सामने झुकने से इनकार कर दिया और रूस से कच्चे तेल का आयात जारी रखा। यों भी, तेजी से बदलती भू-राजनीतिक परिस्थितियों में अमेरिका के हर फैसले को मानने के बजाय भारत के लिए अपने हित को प्राथमिकता देना ज्यादा जरूरी है।
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जाहिर है, भारत की यह दृढ़ता रूस की नजर में महत्त्वपूर्ण होगी और इसीलिए उसने व्यापार संतुलन कायम करने की पृष्ठभूमि में द्विपक्षीय संबंधों को नए सिरे से आकार देने की ओर कदम बढ़ाया है। भारत और रूस के बीच मित्रतापूर्ण संबंधों का एक लंबा दौर रहा है। विकट स्थितियों में भी दोनों देशों के बीच कभी कोई समस्या या तनावपूर्ण स्थिति नहीं आई, जिसमें किसी पक्ष के भीतर संबंधों को लेकर कोई दुविधा हुई हो। बल्कि कूटनीतिक से लेकर सांस्कृतिक या आर्थिक मोर्चे पर दोनों देशों ने एक-दूसरे की प्राथमिकताओं, जरूरत पर आधारित नीतिगत फैसलों की संवेदनशीलता का हमेशा ध्यान रखा और अपनी सीमा के भीतर हर स्तर पर सहयोग किया।
अमेरिका की ओर से दबाव बनाए जाने के बावजूद रूस से कच्चे तेल के आयात को लेकर भारत का नहीं डिगना उसी कड़ी का एक हिस्सा है। रूस ने भारत के इस फैसले की अहमियत को समझा है और व्यापार संतुलन के लिए पुतिन के निर्देश को इसका संकेत माना जा सकता है कि आने वाले दिनों में दोनों देशों के बीच आर्थिक और रणनीतिक सहयोग के नए अध्याय शुरू होंगे।