भारत और पाकिस्तान के बीच पिछले कुछ दिनों से जिस तरह युद्ध के हालात बने हुए थे, उसमें यह आशंका गहरी हो रही थी कि कहीं यह ज्यादा जटिल शक्ल न अख्तियार कर ले। खासतौर पर पाकिस्तान की ओर से जिस तरह की प्रतिक्रिया देखी जा रही थी, उसमें ऐसा लग रहा था कि उसे भारत की ओर से आतंकी ठिकानों को निशाना बनाए जाने से परेशानी है और इसी वजह से वह एक दिशाहीन टकराव की ओर बढ़ रहा है। मगर शनिवार को जिस तरह भारत और पाकिस्तान के बीच संघर्ष विराम के लिए सहमति बनने की खबर आई, उससे शांति के लिए एक सकारात्मक उम्मीद बंधी है।

पाकिस्तान ने शुरू से अपरिपक्वता का परिचय दिया

दरअसल, भारत की मंशा पहले भी सिर्फ इतनी ही रही कि उसने बेलगाम आतंकियों को सबक सिखाने के लिए एक ‘नपी-तुली और नियंत्रित’ प्रतिक्रिया का रास्ता अपनाया था, वह भी उन्हें काबू में करने के लगभग सारे विकल्प खत्म हो जाने के बाद। दूसरी ओर, पाकिस्तान ने आतंकी ठिकानों को निशाना बनाए जाने को अपने ऊपर हमला माना और जवाब में जिस तरह की कार्रवाई शुरू कर दी, उसमें नाहक हड़बड़ी और अपरिपक्वता दिख रही थी। मगर इससे स्थिति बिगड़ जाने की आशंका खड़ी हो गई थी।

हालांकि इस बीच भारत ने कूटनीतिक स्तर पर अंतरराष्ट्रीय राजनीति में प्रभाव रखने वाले देशों के सामने समूची स्थिति स्पष्ट तौर पर रखी और इस संघर्ष में पाकिस्तान की भूमिका को भी रेखांकित किया। यह आतंकियों के खिलाफ प्रत्यक्ष कार्रवाई से लेकर कूटनीति के मोर्चे पर बहुस्तरीय घेरा था, जिसका दबाव पाकिस्तान साफ महसूस कर रहा था। शायद यही वजह है कि अमेरिकी मध्यस्थता के बाद पाकिस्तान के सैन्य संचालन महानिदेशक यानी डीजीएमओ की ओर से भारत के डीजीएमओ को फोन आया और दोनों पक्षों के बीच सहमति बनी कि शनिवार को शाम पांच बजे से जमीन, हवा और समुद्र में सभी तरह की गोलीबारी और सैन्य कार्रवाई बंद कर देंगे।

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जाहिर है, गंभीर शक्ल लेने की ओर बढ़ते टकराव के बीच पूर्ण और तत्काल संघर्ष विराम की घोषणा शांति की राह तलाशने के लिहाज से एक जरूरी पहलकदमी है और इस पर पाकिस्तान को पहले ही गौर करना चाहिए था। मगर कई बार किसी मसले को इस रूप में भी देखा जाता है कि अगर अंत में सब ठीक कर लिया गया तो वही रास्ता सही है।

इसमें कोई दोराय नहीं कि युद्ध किसी भी समस्या का स्थायी हल नहीं है। विडंबना यह है कि कई बार किसी एक पक्ष की द्वेषपूर्ण जिद की वजह से दूसरे को मजबूरन और आखिरी विकल्प के रूप में अपने बचाव में ठोस कदम उठाने पड़ते हैं। पहलगाम में आतंकी हमले के बाद भारत के सामने यही विकल्प बचा था कि वह आतंकियों की लगातार ऐसी हरकतों को रोकने के लिए एक बड़ी कार्रवाई करे और उन्हें संरक्षण और शह देने वाले ठिकानों को निशाना बनाए। दूसरी ओर, पाकिस्तान ने जो रवैया अपनाया हुआ था, उससे कई बार ऐसा लग भी रहा था कि वह नाहक ही हालात को उलझाने में लगा हुआ है।

अंदाजा इससे लगाया जा सकता है कि भारत की संयमित प्रतिक्रिया के बदले में पाकिस्तान ने भारतीय इलाकों में न केवल बेलगाम गोलीबारी शुरू कर दी, बल्कि इस बात का भी खयाल नहीं रखा कि इसका शिकार आम नागरिक हो रहे हैं। एक ओर भारत की कार्रवाई आतंकियों के खिलाफ थी, तो वहीं पाकिस्तान की गोलीबारी में पहले दिन दो बच्चों सहित कई लोगों की जान चली गई। फिलहाल भारत और पाकिस्तान के बीच संघर्ष विराम ने पाकिस्तान के लिए एक मौका मुहैया कराया है कि वह आतंकवादी संगठनों को संरक्षण देने के रुख पर विचार करे और क्षेत्रीय शांति की दिशा में ठोस योगदान दे।