भारत और मारीशस के बीच संबंधों का एक लंबा इतिहास रहा है और दुनिया में समकालीन उथल-पुथल के बीच लगभग हर दौर में अलग-अलग स्तर पर दोनों देशों के बीच साझेदारी के नए अध्याय लिखे जाते रहे। इसी क्रम में अगली कड़ी के तौर पर भारतीय प्रधानमंत्री की मारीशस यात्रा को कई कारणों से महत्त्वपूर्ण माना जा रहा है। इसलिए भी कि दुनिया इस समय भू-राजनीति के एक जटिल दौर से गुजर रही है और इसमें आर्थिक और सामरिक मोर्चे पर नए ध्रुव बन रहे हैं।

ऐसे में भारत के रुख पर विकासशील देशों या ‘वैश्विक दक्षिण’ के साथ-साथ महाशक्ति माने जाने वाले देशों की भी नजर रहती है। यों जब शीतयुद्ध के दौरान दुनिया दो मुख्य ध्रुवों में बंटी हुई थी और कई देशों के नीतिगत फैसले भी उसी से तय होते थे, उस दौर में भी भारत की अहमियत जगजाहिर रही। अब पिछले कुछ समय से अमेरिका में सत्ता परिवर्तन के साथ-साथ दुनिया भर में बन रहे नए समीकरण के बीच भी भारत का रुख सभी देशों के लिए मायने रखता है। अच्छा यह है कि भारत ने महाशक्ति कहे जाने वाले से लेकर बाकी तमाम देशों के साथ अपने संबंधों को खास महत्त्व दिया है।

गौरतलब है कि प्रधानमंत्री की ताजा मारीशस यात्रा के आखिरी दिन ‘उन्नत रणनीतिक साझेदारी के लिए भारत-मारीशस का संयुक्त दृष्टिकोण’ जारी किया गया, जो मुख्य रूप से दोनों देशों के बीच खास और अनूठे संबंधों को रेखांकित करता है। इस दौरान बनी सहमति के तहत बुनियादी ढांचा कूटनीति, वाणिज्य, क्षमता निर्माण, वित्त, आवास, अपराध की जांच, समुद्री यातायात निगरानी, डिजिटल प्रौद्योगिकी, स्वास्थ्य, कृत्रिम बुद्धिमत्ता सहित कई क्षेत्रों में सहयोग बढ़ाने पर केंद्रित बातचीत के जरिए द्विपक्षीय संबंधों को मजबूत करने पर जोर दिया गया।

इनमें भारत द्वारा मारीशस की नई संसद भवन का निर्माण भी शामिल है। पिछले कुछ वर्षों से चीन के रवैये के मद्देनजर रक्षा और समुद्री सुरक्षा सहयोग को भारत और मारीशस के बीच संबंधों का एक महत्त्वपूर्ण स्तंभ मान कर साझेदारी के सफर को आगे बढ़ाना भी एक अहम कड़ी है। हालांकि मुक्त और सुरक्षित हिंद महासागर क्षेत्र सुनिश्चित करने के मामले में साझा प्रतिबद्धता वाले देश के रूप में इन दोनों देशों को एक स्वाभाविक साझीदार माना जाता है। यही वजह है कि क्षेत्र में समुद्री चुनौतियों का सामना करने और व्यापक रणनीतिक हितों की सुरक्षा के लिए मिल कर काम करने का अपना पुराना संकल्प दोहराया।

दरअसल, भारतीय विदेश नीति की प्राथमिकता सूची में ‘पड़ोस प्रथम’ के तहत भी मारीशस का स्थान महत्त्वपूर्ण है। हिंद महासागर में मारीशस अपनी भौगोलिक अवस्थिति की वजह से भारत के लिए एक बेहद अहम रणनीतिक साझेदार है। भारत को भी इसकी अहमियत का भान है, इसलिए मित्रता का स्वाभाविक दायित्व निभाने के साथ-साथ भारत ने पिछले कुछ वर्षों में मारीशस में कई विकास योजनाओं में निवेश किया है।

इस क्रम में दोनों देशों के बीच रिश्ते में एक गहराई भी आई है। रणनीतिक लिहाज से मारीशस की भारत के साथ बढ़ती घनिष्ठता से चीन का असहज होना स्वाभाविक ही है, क्योंकि बीते कुछ समय से चीन कई स्तर पर ऐसी गतिविधियां जारी रखे हुए है, जिससे भारत को घेरा जा सके। उम्मीद की जा सकती है कि मारीशस के साथ भारत का संबंध अब एक नए अध्याय में प्रवेश करेगा, जिसमें नई वैश्विक परिस्थितियों के मुताबिक रणनीतियां तय होंगी।