बीते लगभग दो वर्षों के दौरान तेज उतार-चढ़ाव के बाद भारत और मालदीव के संबंधों में जो नई गर्मजोशी देखी जा रही है, उसे दोनों देशों के अतीत के मजबूत सहयोग को फिर से नया स्वरूप देने की कोशिश के तौर पर देखा जा सकता है। गौरतलब है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की माले यात्रा के दौरान भारत ने मालदीव को 4,850 करोड़ रुपए की ऋण सुविधा देने की घोषणा की और जल्दी ही एक मुक्त व्यापार समझौते को अंतिम रूप देने पर भी सहमति बनी।
इसके अलावा, दोनों पक्षों ने मत्स्य पालन और कृषि, मौसम विज्ञान, डिजिटल सार्वजनिक अवसंरचना, यूपीआइ, भारतीय ‘फार्माकोपिया’ और ऋण सुविधा के क्षेत्र में छह समझौतों पर हस्ताक्षर किए। रक्षा और समुद्री सुरक्षा सहित कई अन्य महत्त्वपूर्ण क्षेत्रों में सहयोग को मजबूत करने के लिए हुई व्यापक वार्ता से यह उम्मीद की जा सकती है कि अब भारत और मालदीव के संबंधों में एक नए अध्याय की शुरुआत होगी। खासतौर पर भारत ने मालदीव के सामने जिस स्तर का धीरज दिखाया और अब भरोसे की दोस्ती को आगे बढ़ाने पर जोर दिया है, वह मालदीव के लिए भी सकारात्मक परिस्थितियों का निर्माण करेगा।
कुछ महीने पहले राष्ट्रपति मुइज्जू के रुख से कड़वाहट पैदा हो गई थी
दरअसल, इस संदर्भ में सहयोग के नए सिरे खुलने की अहमियत इसलिए भी है कि ज्यादा दिन नहीं बीते हैं जब एक बेमानी मुद्दे पर मालदीव के राष्ट्रपति मोहम्मद मुइज्जू के रुख ने दोनों देशों के बीच नाहक ही एक कड़वाहट पैदा कर दी थी। तब मालदीव की ओर से भारत विरोधी कई बयान दिए गए थे और भारतीय सेना की उपस्थिति पर आपत्ति जताई गई थी। स्थिति ऐसी थी कि अगर भारत ने धीरज नहीं दिखाया होता तो तस्वीर दूसरी होती।
मालदीव के अप्रत्याशित रुख के बावजूद भारत ने अपनी ओर से उसकी सहायता के दरवाजे बंद नहीं किए। नतीजा यह निकला कि कुछ समय बाद मालदीव को अपने रुख पर फिर से विचार करना पड़ा और आखिर उसकी ओर से संबंध सुधारने की दिशा में पहलकदमी हुई। हालांकि उस समय भी एक तरह से यह साफ था कि मालदीव की ओर से उठाए जाने वाले नाहक सवालों पर चीन का प्रभाव काम कर रहा था। खुद राष्ट्रपति मुइज्जू को चीन समर्थक माना जाता है।
मालदीव में दिखी PM मोदी की हनक तो टेंशन में आया चीन, मोहम्मद मोइज्जू के रुख से बीजिंग में हलचल
संभव है कि उस समय किन्हीं वजहों से मालदीव की सरकार को भविष्य में पैदा होने वाली परिस्थितियों के बारे में आकलन में हड़बड़ी हुई हो। मगर अब उसके रुख में बदलाव एक बेहतर भविष्य की राह खोल सकता है। पर्यटन मालदीव की अर्थव्यवस्था का एक सबसे बड़ा आधार है। वहां सबसे ज्यादा भारत और चीन के पर्यटक जाते रहे हैं। मगर विवाद के हालात पैदा होने के बाद भारत की ओर से कई पर्यटकों ने मालदीव न जाने को लेकर अभियान चलाया था। जाहिर है, अगर तनाव का वह रास्ता आगे की ओर बढ़ता, तो मालदीव के सामने नई आर्थिक चुनौतियां खड़ी हो सकती थीं।
चीन के बारे में अब सभी जानते हैं कि वह किसी देश की मदद के संदर्भ में भी सबसे पहले अपना हित ही सुनिश्चित करता है। उसकी नजर में हिंद महासागर में मालदीव शक्ति संतुलन में एक बड़ी भूमिका निभाता है। वहीं, चीन के बढ़ते प्रभाव को देखते हुए भारत के लिए वहां अपनी रणनीतिक मौजूदगी को कायम रखना बेहद अहम है। हालांकि भारत परस्पर सहयोग और सद्भावना को प्रमुखता देने वाला देश रहा है। यही कारण है कि भारत ने मालदीव को पर्याप्त महत्त्व दिया है और शायद अब मालदीव को इसकी अहमियत समझ में आ रही है।