भारत और इंडोनेशिया के बीच संबंधों में सहयोग का सफर बहुत पुराना रहा है और अमूमन हर मौके पर दोनों देशों ने नाजुक मौकों पर एक दूसरे का साथ दिया है। इस वर्ष गणतंत्र दिवस पर मुख्य अतिथि के रूप में जब वहां के राष्ट्रपति प्रबोवो सुबियांतो भारत आए, तो रिश्तों के नए आयाम भी खुले। कूटनीतिक पहलू से देखें तो दक्षिण चीन सागर में चीन की बढ़ती सैन्य ताकत के बीच अंतरराष्ट्रीय कानूनों की एक ‘पूर्ण और प्रभावी’ आचार संहिता की वकालत करके दोनों देशों ने इस समूचे इलाके में एक मजबूत हस्तक्षेप किया है।
यह इसलिए भी महत्त्वपूर्ण है कि दक्षिण चीन सागर का क्षेत्र हाइड्रोकार्बन का एक बड़ा स्रोत है। इसलिए चीन इस समूचे इलाके पर अपना प्रभुत्व जताता रहा है। वहीं विएतनाम, फिलीपींस और ब्रुनेई भी इस पर दावा करते हैं। साथ ही, भारत और इंडोनेशनिया ने आपस में आतंकवाद विरोधी सहयोग बढ़ाने का संकल्प लिया और बिना किसी ‘दोहरे मापदंड’ के इस वैश्विक खतरे से निपटने के लिए ठोस प्रयास करने का आह्वान किया।
भारत और इंडोनेशिया के बीच अब सहयोग का नया सफर
यह छिपा नहीं है कि दुनिया के कई देश और खासकर भारत के पड़ोसी कुछ देशों में आतंकवाद के मसले पर कथनी और करनी में कितना फर्क है। ऐसे में आतंकवाद के खिलाफ मोर्चा लेने के संदर्भ में भारत के साथ इंडोनेशिया का मुखर होना अहम है। साथ ही सांस्कृतिक सहयोग, पारंपरिक चिकित्सा, स्वास्थ्य, डिजिटल विकास और समुद्री सुरक्षा के मामले में कई सहमति पत्रों पर भी हस्ताक्षर हुए और रक्षा के मोर्चे पर भी सहयोग को मजबूत करने की घोषणा हुई।
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गौरतलब है कि मौजूदा भूराजनीति के बदलते परिदृश्य में अलग-अलग मामलों में देशों के बीच जो नए समीकरण बन रहे हैं या फिर उनकी ओर से जो नीतियां अपनाई जा रही हैं, उससे उपजी चिंता के मद्देनजर संबंधों के नए सिरे खुलना भी स्वाभाविक है। हालांकि इस संदर्भ में मौजूदा दौर में जैसे समीकरण बन रहे हैं, उसके अनुकूल ज्यादा साहस के साथ ठोस पहल की जरूरत है। उम्मीद की जानी चाहिए कि अतीत की बुनियाद से आगे बढ़ते हुए भारत और इंडोनेशिया के बीच अब सहयोग का नया सफर शुरू होगा।