मौजूदा विश्व में जिस तेजी से अलग-अलग देशों और खेमों में पुराने समीकरण नई शक्ल ले रहे हैं, संबंधों के आयाम बदल रहे हैं, उसमें भारत और जर्मनी के बीच बहुस्तरीय सहयोग के नए तैयार होते रास्ते बेहद अहम हैं। जर्मनी और भारत के सातवें अंतर-सरकारी परामर्श यानी आइजीसी के आयोजन के दौरान दोनों देशों के बीच संबंधों का जो नया अध्याय खुला है, उससे काफी उम्मीदें लगाई जा रही हैं। यह सही है कि आर्थिक और सामरिक स्तर पर विश्व में कई स्तर पर खींचतान, तनाव और टकराव का माहौल चल रहा है और ऐसे में खासतौर पर भारत जैसे किसी देश के लिए सहयोग के मोर्चे तैयार करना एक कठिन चुनौती है।
मगर इसी दौर में यह भी साबित हुआ है कि कुछ युद्धों और अन्य कारणों से दुनिया के ज्यादातर देश अपनी सुविधा के ध्रुवों में बंट रहे हैं, उसमें भारत अलग-अलग देशों के साथ अपने संबंधों को व्यावहारिकता और जरूरत की कसौटी पर तय कर रहा है।
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गौरतलब है कि जर्मनी के चांसलर ओलाफ शोल्ज के साथ भारतीय प्रधानमंत्री की बातचीत के बाद दोनों देशों के बीच कई मोर्चों पर सहयोग की घोषणा की गई। इसमें कई संधियों पर हस्ताक्षर किए जाने के साथ-साथ द्विपक्षीय रिश्तों को और मजबूत करने की प्रतिबद्धता पर भी जोर दिया गया। भारत में बेरोजगारी की समस्या आम है तो जर्मनी में कुशल कामगारों की कमी है। इस लिहाज से देखें तो द्विपक्षीय बातचीत में जर्मनी में भारत के कुशल कामगारों की बढ़ती मांग और यहां के प्रशिक्षित श्रमिकों के लिए वार्षिक वीजा की संख्या बीस हजार से बढ़ा कर नब्बे हजार करने पर बनी सहमति काफी मायने रखती है।
मुफ्त व्यापार को लेकर बन सकती है सहमति
व्यापार और सामरिक साझेदारी के मोर्चे पर महत्त्वपूर्ण बातचीत के अलावा तकनीक, कौशल विकास, कृत्रिम बुद्धिमता, सेमीकंडक्टर, स्वच्छ ऊर्जा से लेकर खुफिया जानकारी साझा करने जैसे कई मुद्दों पर सहयोग की घोषणा से स्पष्ट है कि कुछ मसलों पर मतभिन्नता के बावजूद जर्मनी और भारत एक नए रास्ते की ओर बढ़ रहे हैं। हालांकि यह देखना होगा कि मुक्त व्यापार पर विश्व व्यापार संगठन की व्यवस्था को मानने के मसले पर किस हद तक सहमति बन पाती है।
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ताजा बैठक में रूस और यूक्रेन के बीच जारी युद्ध में भारत की भूमिका का भी जिक्र हुआ, लेकिन ऐसा लगता है कि इस मामले में भारत ने बहुत सधे कदमों के साथ जिस तरह एक संतुलित रुख अख्तियार किया है, उसे दूसरे देश भी समझ रहे हैं। मसलन, रूस और यूक्रेन युद्ध में भारत और जर्मनी की राय अलग-अलग है। एक ओर, जर्मनी खुल कर रूस के रुख को अंतरराष्ट्रीय चिंता का कारण बताता है, वहीं भारत साफतौर पर युद्ध की निरर्थकता को रेखांकित करता है कि युद्ध किसी भी समस्या का समाधान नहीं हो सकता।
कई क्षेत्रों में सहयोग को मजबूत करना
हालांकि वैश्विक परिदृश्य में जर्मनी के सामने अपने पक्ष को लेकर जिस तरह की चुनौतियां हैं, उसमें भारत से भी उसे अपना साथ देने की उम्मीद होगी। मगर भारत का अपना पक्ष है और जर्मनी शायद इसे समझता है। यही वजह है कि कई क्षेत्रों में सहयोग को मजबूत करने के लिए जो भी बातचीत हुई, उस पर इसका कोई असर नहीं पड़ा।
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फिलहाल वैश्विक स्तर पर भू-राजनीति के जैसे दांव-पेच चल रहे हैं, उसमें स्वाभाविक ही भारत के लिए थोड़ी संवेदनशील स्थिति है। मगर इस मामले में भारत ने जिस तरह सावधानी के साथ फूंक-फूंक कर अपने कदम बढ़ाए हैं, उसमें जर्मनी के साथ सहयोग का नया अध्याय भी इसका एक ठोस उदाहरण है।