सरकार लगातार देश की अर्थव्यवस्था पांच लाख करोड़ डालर तक पहुंचाने का संकल्प दोहराती रही है। दावा किया जाता है कि भारत जल्दी ही दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी आर्थिक शक्ति बन जाएगा। इसके लिए प्रयास भी किए जा रहे हैं। इस लक्ष्य की तरफ आगे बढ़ने का उत्साह नीति आयोग शासी परिषद की दसवीं बैठक में भी दिखा। इसमें प्रधानमंत्री ने सभी राज्यों के मुख्यमंत्रियों से कहा कि अगर वे टीम इंडिया की तरह काम करें और हर राज्य, हर शहर, हर गांव को विकसित बनाने के लिए काम करें, तो आजादी की सौवीं वर्षगांठ से पहले ही देश को विकसित की श्रेणी में खड़ा किया जा सकता है।
उन्होंने पर्यटन और शहरी विकास पर विशेष बल दिया। इस बैठक का विषय भारत को 2047 तक विकसित देश बनाने पर विचार करना था। यह एक तरह से केंद्र सरकार के विकासोन्मुखी कार्यक्रमों को और गति देने की मंशा के अनुरूप ही है। अक्सर विपक्षी दलों वाली राज्य सरकारों और केंद्र सरकार के बीच नीतियों का टकराव देखा जाता रहा है, जिसका असर विकास कार्यक्रमों पर पड़ता है। अच्छी बात है कि इस बैठक में प्रधानमंत्री ने मुख्यमंत्रियों के साथ संबंधों में सहजता लाने का प्रयास किया। इसी का नतीजा है कि बैठक में किसी प्रकार का वैचारिक विरोध नजर नहीं आया। हालांकि कांग्रेस ने इस बैठक को लोगों का ध्यान भटकाने का सरकार का एक और प्रयास बताया है।
केंद्र द्वारा राज्य सरकारों के साथ सौहार्द और सहयोग का रिश्ता कायम करना मुख्य चुनौती
इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि भारत दुनिया की तेजी से उभरती अर्थव्यवस्था है और तमाम झटकों के बावजूद इसकी रफ्तार पर बहुत प्रतिकूल प्रभाव नहीं पड़ा है। ऐसे में विकासशील देशों यानी वैश्विक दक्षिण देशों की उम्मीदें इससे और जुड़ती गई हैं। विश्व पटल पर व्यापारिक समझौतों आदि के मामले में भारत ने कई उल्लेखनीय उपलब्धियां हासिल की हैं। ऐसे में अगर केंद्र और सभी राज्य सरकारें मिल कर विश्व मानकों के अनुरूप अपने शहरों, पर्यटन स्थलों और विनिर्माण योजनाओं पर गंभीरता से काम करें, तो एक मिसाल कायम हो सकती है।
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मगर असल चुनौती यही है कि केंद्र सरकार किस तरह राज्य सरकारों के साथ सौहार्द और सहयोग का रिश्ता कायम कर पाती है। पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री तो लगातार केंद्र की नीतियों और बैठकों आदि का विरोध करती रही हैं। इसके अलावा, विपक्षी दलों की राज्य सरकारों के साथ केंद्र के रिश्ते तनावपूर्ण देखे गए हैं। इसलिए केंद्र से ही अपेक्षा की जाती है कि वह इस तल्खी को दूर करने का प्रयास करे।
बेरोजगारी और गरीबी उन्मूलन के मामले में अपेक्षित कामयाबी नहीं मिल पा रही
विकास और अर्थव्यवस्था एक-दूसरे से नत्थी होते हुए भी कई मामलों में इनमें अलगाव भी होता है। जरूरी नहीं कि सकल घरेलू उत्पाद के आंकड़ों के आधार पर अर्थव्यवस्था की दर ऊंची होने पर देश में खुशहाली का स्तर भी ऊंचा हो। भारत में यह विरोधाभास गहरा है। एक तरफ विकास दर ऊंची है, तो दूसरी तरफ बेरोजगारी और गरीबी उन्मूलन के मामले में अपेक्षित कामयाबी नहीं मिल पा रही। शिक्षा और स्वास्थ्य सुविधाएं भी प्रश्नांकित होती रहती हैं।
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अर्थव्यवस्था के सभी क्षेत्रों में विकास दर संतुलित नहीं है। विनिर्माण क्षेत्र अब भी हिचकोले खा रहा है। इसकी बड़ी वजह है कि निर्यात बढ़ाने और व्यापार घाटा पाटने में अपेक्षित कामयाबी नहीं मिल पा रही। विदेशी प्रत्यक्ष निवेश लक्ष्य के मुताबिक आकर्षित नहीं हो पा रहा। ऐसे में अगर केंद्र और राज्य सरकारें समन्वित रूप से काम करें, तो निस्संदेह कामयाबी की उम्मीद बनती है।