आज के दौर में तकनीकी विकास के साथ युद्ध के तरीके भी बदल गए हैं। अब पारंपरिक युद्ध के बजाय तकनीक का ज्यादा इस्तेमाल हो रहा है। दुश्मन देश की जमीनी सीमा पार किए बिना ही हवाई हमलों को बखूबी अंजाम दिया जाता है। ड्रोन, स्वायत्त प्रणाली और हाइपरसोनिक हथियारों के उदय ने युद्ध के पारंपरिक सिद्धांतों को बदल दिया है। ऐसे में कोई भी देश तभी अपनी सुरक्षा सुनिश्चित कर सकता है, जब उसके पास मजबूत वायु रक्षा प्रणाली हो।
इसी के मद्देनजर भारत ने हाल में एकीकृत हवाई रक्षा हथियार प्रणाली का सफल परीक्षण कर इस दिशा में एक और सफलता हासिल कर ली है। ‘आपरेशन सिंदूर’ में पाकिस्तान को शिकस्त देने के करीब तीन माह बाद भारत की रक्षा प्रणाली में मजबूती का यह एक नया अध्याय जुड़ गया है। ड्रोन और मिसाइलों के हमलों को नाकाम करने की अपनी क्षमता को और ज्यादा सुदृढ़ एवं विश्वसनीय बनाने की ओर एक बड़ी और अहम कामयाबी है।
पारंपरिक युद्ध की तुलना में आज के युद्ध में तकनीक का महत्त्व सर्वोपरि
पारंपरिक युद्ध की तुलना में आज के युद्ध में तकनीक का महत्त्व सर्वोपरि है। अब लड़ाई जमीन पर नहीं, बल्कि आसमान से लड़ी जा रही है। आधुनिक हाइपरसोनिक और क्रूज मिसाइलें हजारों किलोमीटर दूर अपने लक्ष्य को भेद सकती हैं। ड्रोन का इस्तेमाल अब रक्षा प्रणालियों और सैन्य ठिकानों को नुकसान पहुंचाने के लिए किया जा रहा है, जैसा रूस-यूक्रेन युद्ध और मध्य-पूर्व के संघर्षों में देखा गया है। जाहिर है, इस तरह के खतरों से निपटने के लिए भारत की रक्षा तैयारियों को तेज करना आवश्यक है।
भारत की नव-विकसित एकीकृत हवाई रक्षा हथियार प्रणाली बहुस्तरीय प्रणालियों का एक ऐसा स्वदेशी तंत्र है, जो दुश्मन के लड़ाकू विमानों, ड्रोन और मिसाइलों को लक्ष्य तक पहुंचने से पहले ही नष्ट करने में सक्षम है। इसमें हमले का संकेत मिलने पर तुरंत जवाब देने और सतह से हवा में मार करने वाली स्वदेशी मिसाइल प्रणाली तथा उच्च शक्ति वाली लेजर आधारित प्रणाली शामिल है, जो दुश्मन के हौसलों को पस्त कर देगी। दरअसल, इस रक्षा प्रणाली को मिशन ‘सुदर्शन चक्र’ के तहत विकसित किया गया है, जिसका मकसद वर्ष 2035 तक भारत को एकीकृत वायु रक्षा प्रणाली में पूरी तरह आत्मनिर्भर बनाना है।