भारत और चीन के बीच वास्तविक नियंत्रण रेखा पर तनाव लंबे समय से है, मगर करीब पांच वर्ष पहले गलवान घाटी में दोनों देशों के सैनिक परस्पर गुत्थमगुत्था हो गए, तबसे तल्खी कुछ अधिक बनी रही है। हालांकि बीते अक्तूबर में दोनों देशों के बीच समझौता हुआ कि वे पूर्वी लद्दाख से अपनी सेनाएं वापस बुलाएंगे और एक-दूसरे के क्षेत्र में अतिक्रमण का प्रयास नहीं करेंगे। उसके बाद रूस के कजान शहर में आयोजित ब्रिक्स सम्मेलन में दोनों देशों के प्रमुखों ने फिर से हाथ मिलाया और रणनीतिक मुद्दों पर अलग से बातचीत की।

इससे दुनिया को यही संदेश गया कि भारत और चीन के रिश्तों में आई कड़वाहट अब दूर हो गई है और वास्तविक नियंत्रण रेखा पर टकराव की स्थितियां फिर नहीं बनेंगी। मगर सेना दिवस से दो दिन पहले और फिर सेना दिवस के अवसर पर भारतीय सेना प्रमुख ने जिस तरह वास्तविक नियंत्रण रेखा की हकीकत बयान की, उससे यही जाहिर हुआ है कि भारत अब भी चीन को लेकर सतर्क है। सेना प्रमुख ने कहा कि वहां स्थिति अभी संवेदनशील है और कुछ मसलों पर गतिरोध बरकरार है, जिस पर बैठ कर व्यापक समझ बनाने की जरूरत है।

टकराव से बचने के लिए अब भी उस क्षेत्र में सैनिकों की गश्त पर अस्थायी रोक है

दरअसल, चीन का कोई भी कदम संदेह से परे नहीं होता। उसने जिस तरह लद्दाख से सेनाओं की वापसी पर सहमति जताई और फिर उस इलाके में निर्माण कार्य शुरू किए, उससे जाहिर है कि वह अपनी रणनीति पर पीछे हटने को तैयार नहीं। टकराव से बचने के लिए अब भी उस क्षेत्र में सैनिकों की गश्त पर अस्थायी रोक है। अब इस बात के भी पुख्ता प्रमाण हैं कि 2020 में हुए सैन्य टकराव के बाद चीन ने भारतीय अधिकार वाले क्षेत्र में बड़े पैमाने पर अतिक्रमण किया और कुछ जगहों पर गांव और प्रशासनिक इकाइयां बसा दी। वहां उसने बड़ी मात्रा में आयुध सामग्री जमा कर रखी है।

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ऐसी स्थिति में भारतीय सेना के लिए वास्तविक नियंत्रण रेखा से अपने अतिरिक्त सैनिकों को वापस बुलाने का फैसला करना कठिन बना हुआ है। चीन ऐसी चालें चलता रहता है कि वह जिन मुद्दों पर समझौता करता है, उन्हीं के विरुद्ध कदम भी उठाता रहता है। ऐसे में भारतीय सेना वास्तविक नियंत्रण रेखा पर किसी तरह की ढिलाई नहीं बरतना चाहती। सेना प्रमुख ने कहा कि ऐसी स्थिति में हमें विश्वास बहाली को नए सिरे से परिभाषित करने की जरूरत है।

स्थायी समाधान की उम्मीद शायद ही

यह अच्छी बात है कि सेना प्रमुख ने वास्तविकता को सार्वजनिक रूप से स्वीकार और बड़ी साफगोई से अपनी रणनीति का इजहार किया। वास्तविक नियंत्रण रेखा की हकीकत पर प्राय: पर्दा डालते देखा जाता रहा है, मगर सेना प्रमुख ने ऐसा नहीं किया। मगर वहां जिन क्षेत्रों में स्थिति संवेदनशील बताई और चीन के अतिक्रमण को रेखांकित किया जा रहा है, उसमें केवल दोनों तरफ की सेनाओं के अधिकारियों के बीच बैठकों और बातचीत के सिलसिले से कोई स्थायी समाधान की उम्मीद शायद ही बने।

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इसके लिए राजनीतिक स्तर पर प्रयास करने होंगे, जो कि अभी तक अवरुद्ध ही नजर आ रहे हैं। ब्रिक्स सम्मेलन के बाद दोनों देशों के राजनीतिक रिश्तों में वैसी गर्मी नहीं लौट पाई है, जिसके आधार पर कहा जा सके कि वास्तविक नियंत्रण रेखा पर कोई स्थायी समाधान निकल पाएगा। इसके लिए कूटनीतिक प्रयास तेज करने होंगे। अच्छी बात है कि इसे लेकर भारतीय सेना सतर्क है, पर संजीदा राजनीतिक प्रयासों से उसे और ताकत मिलेगी।