वास्तविक नियंत्रण रेखा पर भारत और चीन के बीच सैन्य गतिरोध फिलहाल दूर हो गया लगता है। दोनों देशों के सैनिकों ने दिवाली पर मिठाइयों का आदान-प्रदान किया और भारतीय सेना ने पूर्वी लद्दाख के डेमचोक इलाके में गश्त भी शुरू कर दी। जल्दी ही डेपसांग इलाके में भी भारतीय सैनिक गश्त करना शुरू कर देंगे। रूस में आयोजित इस बार के ब्रिक्स शिखर सम्मेलन में दोनों देशों के शीर्ष नेताओं ने द्विपक्षीय बातचीत की थी। उसके दो दिन पहले एलएसी पर पूर्व स्थिति बनाने को लेकर सहमति बनी थी। इससे फिर दोनों देशों के बीच रिश्तों में गर्मी लौटने की उम्मीद जताई जा रही है।

जून 2020 से बना हुआ है सीमा पर गतिरोध

जून 2020 में गलवान घाटी में चीनी सैनिक भारतीय क्षेत्र में घुस आए थे और हमारे सैनिकों के साथ उनका खूनी संघर्ष हुआ था, जिसमें दोनों तरफ के सैनिक हताहत हुए थे। तब से राजनीतिक गतिरोध बना हुआ था। हालांकि दोनों देशों के सैन्य अधिकारी इस विवाद को सुलझाने के लिए बैठकें करते रहे और उन बैठकों में सकारात्मक नतीजे भी निकले थे। उन्हीं बैठकों के चलते पांच में से तीन क्षेत्रों से चीन ने अपनी सेनाएं पीछे लौटा ली थीं। दो क्षेत्रों में विवाद बना हुआ था, जो अब समाप्त हो गया है।

असल में चीन और भारत के बीच तनावपूर्ण रिश्तों का असर रूस और दक्षिण एशिया के अन्य देशों पर भी पड़ रहा था। जिस तरह रूस-यूक्रेन संघर्ष लगातार बना हुआ है, उसमें रूस पर अमेरिकी प्रतिबंधों के मद्देनजर भारत से उसके मजबूत रिश्ते बहुत अहमियत रखते हैं। चीन से भारत की तनातनी के चलते यह समीकरण ठीक से बैठ नहीं पा रहा था। इसलिए माना जा रहा है कि रूस के प्रयत्नों से ही भारत-चीन के रिश्तों में आई खटास दूर हुई है। मगर यह अच्छी बात है कि एलएसी पर बेवजह तनाव बने रहने से जो दोनों देशों का ध्यान उस तरफ लगा रहता था, उससे आजादी मिलती दिख रही है।

अमेरिका इस तनाव का लाभ उठाने का प्रयास कर रहा था। जबसे चीन के साथ भारत के संबंध कुछ मधुर होने शुरू हुए हैं, अमेरिका की भौहें कुछ तनी नजर आने लगी हैं। रूस के साथ भारत की नजदीकी से वह पहले से खफा है। अभी अमेरिका ने जिन उन्नीस भारतीय कंपनियों पर यह कहते हुए प्रतिबंध लगाए हैं कि वे रूस को मदद पहुंचा रही थीं, उससे उसकी खीझ समझी जा सकती है।

मगर भारत ने अपने रिश्तों में संतुलन बनाए रखा है। रूस के साथ अपने रिश्तों में किसी तरह की खटास नहीं आने दी है और अमेरिका से भी नजदीकी बनाए रखी है। इसलिए कि भारत अपने को किसी गुट में शामिल नहीं किया है। फिर, जिस तरह भारत की आर्थिक हैसियत लगातार बढ़ रही है, और वह वैश्विक दक्षिण देशों के लिए लगातार भरोसेमंद साझीदार बना हुआ है, उसमें कोई भी भारत को फिलहाल नजरअंदाज नहीं कर सकता। चीन का बहुत बड़ा व्यापार भारत के साथ है, वह उसे किसी भी रूप में गंवाना पसंद नहीं करेगा।

माना जा रहा है कि सीमा विवाद संबंधी ताजा समझौते से इस समस्या का कोई स्थायी समाधान निकल सकता है। मगर संशय इसी बात को लेकर बना हुआ है कि चीन अपने इस लचीले रुख को कब तक कायम रख पाता है। जब तक वह अपनी विस्तारवादी नीतियों को सिकोड़ने का प्रयास नहीं करेगा, उसके किसी भी कदम को बहुत भरोसे के साथ देखना मुश्किल है।