जब भी दो देशों के बीच सीमा पर तनाव बना रहता है, तो स्वाभाविक रूप से उनका आर्थिक विकास प्रभावित होता है। इसलिए दुनिया भर में प्रयास किए जाते हैं कि पड़ोसी देशों के साथ तनाव का रिश्ता न रहे। मगर अक्सर वर्चस्ववादी नीतियों के चलते कुछ देशों में परस्पर टकराव बना रहता है। भारत और चीन के बीच भी लंबे समय से रिश्ते इसीलिए मधुर नहीं हो पाते कि चीन वास्तविक नियंत्रण रेखा यानी एलएसी की मर्यादा का पालन नहीं करता। वह अपनी विस्तारवादी नीति पर कायम है।
15 जून, 2020 को चीनी सैनिकों ने गलवान घाटी के भारतीय क्षेत्र में अतिक्रमण किया था। दोनों देशों के सैनिकों के बीच टकराव हुआ। उसके बाद चीन ने भारत के हिस्से वाले छह क्षेत्रों में अतिक्रमण कर लिया था। तबसे लगातार वास्तविक नियंत्रण रेखा पर संघर्ष की स्थिति बनी हुई थी। अच्छी बात है कि दोनों देशों के बीच अब अपने सैनिकों को वापस बुलाने और एलएसी पर 2020 से पहले की स्थिति बहाल करने पर सहमति बन गई है। सोमवार को भारत ने इसकी सूचना जारी की थी, अब चीन ने भी इसकी पुष्टि कर दी है। चीन ने कहा है कि वह भारत के साथ मिल कर सीमा संबंधी विवाद का हल निकालने का प्रयास करेगा।
यह अच्छी बात है कि गलवान में हुए सैन्य संघर्ष के बाद भी चीन बिना किसी हील-हुज्जत के हमेशा बातचीत की मेज पर बैठता रहा। तब से सैन्य अधिकारी स्तर की बीस से अधिक बैठकें हो चुकी हैं। इसके अलावा विदेश मंत्रियों के स्तर पर भी बातचीत के कई दौर हो चुके हैं। इन्हीं बैठकों और बातचीत का नतीजा है कि चीन ने भारत के छह में से चार क्षेत्रों देपसांग, गलवान, हाटस्प्रिंग और पैंगोंग से अपनी सेना हटा ली थी। मगर अभी भी दौलतबेग ओल्डी और डेमचोक में उसका कब्जा बना हुआ था। भारतीय सैनिक उन क्षेत्रों में गश्त करने नहीं जा सकते थे।
चीन का सकारात्मक रुख
ताजा समझौते के अनुसार उन दोनों क्षेत्रों को भी खोल दिया गया है। अब भारतीय सेना अपने तय क्षेत्रों में गश्त कर सकेगी। भारत ने इसे चीन का सकारात्मक रुख बताया है। दोनों देशों के बीच विश्वास बहाली के लिए उनकी सेनाओं का परस्पर मेलजोल बढ़ना जरूरी है। इस तरह अगर भरोसा बढ़ेगा, तो निश्चय ही सीमा विवाद को सुलझाने की दिशा में भी सकारात्मक कदम उठाना आसान होगा।
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हालांकि चीन के किसी भी रुख पर दावे के साथ कुछ कहना मुश्किल होता है। पूर्वी लद्दाख में उसके ताजा सकारात्मक रुख से निस्संदेह भारतीय सेना का तनाव काफी कम होगा, मगर चीन कब अपना रुख बदल ले, कहना मुश्किल है। भारत के पड़ोसी देशों, पाकिस्तान और श्रीलंका में विकास परियोजनाओं के जरिए उसने अपनी मौजूदगी बढ़ाने में काफी हद तक कामयाबी हासिल कर ली है। समय-समय पर वह भारतीय हिस्से वाली जगहों को अपना बता कर उनका नाम बदलता और उन्हें अपने नक्शे में दिखाता रहा है।
सीमा विवाद सुलझाने की जगी उम्मीद
हिंद महासागर में वह अपनी मौजूदगी बनाए रखने और बढ़ाने का लगातार प्रयास करता देखा जाता है। इसलिए उचित ही भारत कोई बड़ा दावा करने से बच रहा है। मगर यह भारत की बड़ी कामयाबी कही जाएगी कि उसने बहुत सावधानी और संयम के साथ चीन को अतिक्रमण वाली जगहों से वापस लौटने को राजी कर लिया। अगर इसी तरह दोनों देश निरंतर और सकारात्मक रुख के साथ प्रयास करते रहें, तो सीमा विवाद को भी सुलझाने की उम्मीद जगती है।