इसमें दो राय नहीं कि भारत और चीन के बीच द्विपक्षीय संबंधों का सहज और दोस्ताना होना न केवल दोनों देशों और इस समूचे क्षेत्र के लिए, बल्कि विश्व के लिए महत्त्वपूर्ण है। लेकिन ऐसा तभी संभव है कि भारत और चीन, दोनों की ओर से इसके लिए हर संभव कदम उठाए जाएं, विवाद के बिंदुओं पर सद्भावपूर्ण माहौल में हल निकाला जाए।

मुश्किल यह है कि सीमा विवाद से लेकर अन्य तमाम मुद्दों पर भारत अपनी तरफ से तो विवाद के हल के लिए कदम बढ़ाता है, लेकिन हर कुछ समय के अंतराल पर चीन कोई न कोई ऐसी हरकत कर बैठता है, जिससे संबंधों में सुधार की राह में अड़चन पैदा होती है। खासतौर पर सीमा पर आए दिन चीन की ओर से जैसी अवांछित गतिविधियां की जाती हैं, उससे उसकी मंशा का पता चलता है।

फिर भी भारत ने आवेश में आकर कभी अपना नियंत्रण नहीं खोया है और इसकी कोशिश यही होती है कि समस्या को जटिल बनाने के बजाय उसके हल की ओर बढ़ा जाए। सवाल है कि भारत के इस रुख के बावजूद सीमा पर घुसपैठ से लेकर गैरजरूरी सैन्य गतिविधियों के जरिए चीन आखिर क्या संदेश देना चाहता है!

जाहिर है, ऐसी स्थिति में संबंधों में सुधार की जमीन कमजोर ही होती है। इसलिए भारत ने चीन को स्पष्ट रूप से यह बताया है कि दोनों देशों के रिश्तों में अगर सहजता नहीं आ पा रही है तो इसकी वजह है। दरअसल, दक्षिण अफ्रीका के जोहानिसबर्ग में ‘फ्रेंड्स आफ ब्रिक्स’ की बैठक से इतर सोमवार को भारत के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजित डोभाल ने चीन के शीर्ष राजनयिक वांग यी से मुलाकात के दौरान दो-टूक लहजे में कहा कि वास्तविक नियंत्रण रेखा पर लगातार टकराव की स्थिति बने रहने के कारण भरोसा टूटा है और पश्चिमी क्षेत्र में स्थिति ज्यादा बिगड़ी है।

उन्होंने कहा कि इन्हीं हालात की वजह से 2020 के बाद से भारत और चीन के बीच सार्वजनिक और राजनीतिक संबंध कमजोर हुए हैं और भरोसे में कमी आई है। यों भी वास्तविक नियंत्रण रेखा को ऐसा क्षेत्र माना जाता है, जिस पर तनाव के हालात में दो देशों के संबंध खराब भी हो जा सकते हैं। लेकिन भारत के धीरज की परीक्षा चीन अक्सर लेता रहता है और गलत तरीके से उकसाता रहता है।

भारत और चीन के बीच पूर्वी लद्दाख में पिछले करीब तीन साल से सैन्य गतिरोध जारी है। इसके अलावा, अरुणाचल प्रदेश में भी चीन की अवांछित घुसपैठ की कोशिश की खबरें आती रही हैं। ऐसे में भारत के सामने स्थिति स्पष्ट करने के अलावा कोई चारा नहीं रह जाता है। फिर भी भारत ने हमेशा ही सीमावर्ती क्षेत्रों में अमन बहाली की कोशिश को जारी रखने पर ही जोर दिया है, क्योंकि सिर्फ इसी के जरिए द्विपक्षीय संबंधों को सामान्य बनाने की राह में आई बाधाओं को दूर किया जा सकता है।

हाल ही में विदेश मंत्री एस जयशंकर ने भी वांग यी के साथ सीमावर्ती क्षेत्रों में अमन-चैन से संबंधित लंबित मुद्दों पर बातचीत की थी। भारत के इस पक्ष को समझा जा सकता है कि जब तक सीमा क्षेत्र में शांति कायम नहीं होगी, तब तक द्विपक्षीय संबंधों का सामान्य होना मुश्किल है। जाहिर है, यह एक तरह से चीन पर ही निर्भर है।

अगर चीन की ओर से दोनों देशों के बीच आपसी रणनीतिक विश्वास बढ़ाने की सदिच्छा जाहिर की जाती है तो इसके लिए उसकी ओर से ईमानदार इच्छाशक्ति का प्रदर्शन भी जरूरी है। विवाद के बिंदुओं को हल करने और बाधाओं को दूर करने के लिए सहमति और सहयोग के सिद्धांत पर ठोस तरीके से काम करना होगा।