अमेरिका ने आखिर उस सच को स्वीकार कर लिया, जिसे भारत पहले ही दुनिया के सामने उजागर कर रहा था। पाकिस्तान के आतंकी संगठन लश्कर-ए-तैयबा की मुखौटा इकाई ‘द रेजिस्टेंस फ्रंट’ (टीआरएफ) को अमेरिका ने वैश्विक आतंकवादी संगठन घोषित किया है। यह वही आतंकी संगठन है, जिसने पहलगाम में निर्दोष लोगों का खून बहाया। अमेरिका का यह कदम भारत के लिए एक कूटनीतिक जीत के रूप में देखा जा रहा है। यह इस बात का भी सूचक है कि आतंकवाद से निपटने के मोर्चे पर भारत के प्रयास सफल हो रहे हैं।
इस फैसले ने न सिर्फ टीआरएफ के आतंकी चेहरे से पर्दा हटाया है, बल्कि पाकिस्तान की उन नापाक हरकतों को भी बेनकाब कर दिया, जिन्हें वह खुद को आतंकवाद से पीड़ित बताकर छिपाता आ रहा है। विदेश मंत्री एस जयशंकर ने इसे भारत-अमेरिका के बीच मजबूत आतंकवाद-रोधी सहयोग का प्रमाण बताया है और आतंक के खिलाफ लड़ाई में वैश्विक सहयोग की जरूरत पर बल दिया है।
पहलगाम आतंकी हमले की टीआरएफ ने ली थी जिम्मेदारी
जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में हुए आतंकी हमले की जिम्मेदारी टीआरएफ ने ली थी, लेकिन बाद में भारत और पाकिस्तान के बीच तनाव बढ़ने पर उसने अपना बयान वापस ले लिया। यह कोई नया आतंकी संगठन नहीं है, बल्कि लश्कर-ए-तैयबा और उसके सरगना हाफिज सईद की पुरानी साजिश का नया चेहरा है। पाकिस्तान ने इसे इस तरह पेश किया जैसे यह कश्मीर का स्थानीय संगठन हो, ताकि दुनिया के सामने वह अपने दामन को पाक-साफ दिखा सके।
यह बात छिपी नहीं है कि कई बड़े आतंकी संगठन पाकिस्तान की धरती से संचालित किए जा रहे हैं। इनमें लश्कर-ए-तैयबा, जैश-ए-मोहम्मद और हिज्बुल मुजाहिद्दीन प्रमुख हैं। अंतरराष्ट्रीय मंचों पर भी कई बार ये सवाल उठे हैं, उसका नतीजा यह हुआ कि पाकिस्तान ने रणनीति बदली और आतंकी संगठनों के नाम भी बदलने शुरू कर दिए। टीआरएफ इसका एक उदाहरण है। मगर, अमेरिका की ओर से इसे वैश्विक आतंकी संगठन घोषित किया जाना इस बात का सबूत है कि आतंकियों को हथियार की तरह इस्तेमाल करने के इरादों को किसी छद्म नाम की आड़ में छिपाया नहीं जा सकता।
आतंकवाद के खिलाफ भारत के साथ खड़े होने का दावा करता है अमेरिका
इसे भारत की कूटनीतिक ताकत ही कहा जाएगा कि उसने न सिर्फ टीआरफ को बेनकाब किया, बल्कि दुनिया को यह भी दिखाया कि आतंकवाद के खिलाफ उसका रुख कितना मजबूत है। पहलगाम आतंकी हमले के बाद भारत ने कूटनीतिक स्तर पर विभिन्न देशों को आतंक के खिलाफ एकजुट करने के प्रयास तेज कर दिए हैं। ऐसे में अमेरिका पर भी यह साबित करने का दबाव था कि वह आतंकवाद के खिलाफ दोहरे मापदंड नहीं अपनाता है।
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दोहरे मापदंड की बात इसलिए अहम है, चूंकि एक तरफ अमेरिका आतंकवाद के खिलाफ भारत के साथ खड़े होने का दावा करता है, तो दूसरी ओर पाकिस्तान को अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष और विश्व बैंक से बड़ी धनराशि कर्ज के रूप में दी जाती है। सवाल यह है कि जब अमेरिका यह मानता है कि पाकिस्तान आतंकियों को पाल-पोस रहा है, तो वह वैश्विक संस्थाओं से उसे वित्तीय मदद रोकने की वकालत क्यों नहीं करता है? बहरहाल, भारत आतंकवाद को कतई बर्दाश्त नहीं करने की नीति पर चल रहा है और अब समय आ गया है कि दुनिया के तमाम देश इस लड़ाई में भारत के साथ आएं तथा दोहरे मापदंड त्याग कर आतंकवाद की जड़ों पर प्रहार करें।