दुनिया भर में बदलती भू-राजनीतिक परिस्थितियों के बीच रूस के विदेश मंत्री ने भारत के अन्य देशों के साथ संबंधों को लेकर जो कहा है, उसे एक परिपक्व टिप्पणी कहा जा सकता है। दरअसल, पिछले कुछ समय से अमेरिका ने आर्थिक मोर्चे पर जिस तरह तेज रफ्तार से नीतिगत फैसले किए हैं, उसके केंद्र में सिर्फ अपना हित सुनिश्चित करने के लिए दूसरे देशों के हितों को नजरअंदाज करने से लेकर उन पर दबाव बनाने तक का रवैया शामिल है। इस क्रम में भारत कुछ ज्यादा ही निशाने पर लगता है, क्योंकि अमेरिका ने शुल्क लगाने से लेकर रूस से तेल आयात करने पर जुर्माना लगा कर कई तरह से भारत पर दबाव बनाने की कोशिश की।
मगर भारत के लिए सबसे अहम चुनौती यह है कि वह किसी भी देश के नाहक दबाव के सामने किस हद तक समझौता कर सकता है। ऐसी स्थिति में भारत ने अपनी स्वतंत्र नीति पर अमल जारी रखा और अमेरिका के बहुस्तरीय दबाव के बावजूद अपने स्तर पर कूटनीतिक फैसले लिए। इसके तहत भारत ने बिना किसी आग्रह के यह तय किया कि किस देश के साथ उसे कैसा संबंध रखना है और किसे अपने सहयोगी के रूप में तरजीह देना है।
रूस ने हमेशा से भारत की स्वतंत्र विदेश नीति का किया सम्मान
कायदे से भारत के इस रुख से किसी भी देश को उज्र नहीं होना चाहिए था, क्योंकि इसमें अन्य देशों की उपेक्षा या किसी के विरुद्ध कोई नीतिगत दखलअंदाजी नहीं है। इस लिहाज से देखें तो रूस के विदेश मंत्री सर्गेई लावरोव का यह बयान महत्त्वपूर्ण है कि रूस ने हमेशा से भारत की स्वतंत्र विदेश नीति का सम्मान किया है और रूस को इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि भारत का दूसरे देशों के साथ कैसा रिश्ता है। लावरोव ने यह भी कहा कि अमेरिका के साथ भारत के संबंध कैसे रहते हैं, इसे लेकर भी रूस को कभी चिंता नहीं हुई।
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जाहिर है, रूसी विदेश मंत्री का बयान एक स्वतंत्र और संप्रभु देश के रूप में भारत के कूटनीतिक फैसलों का सम्मान करने के साथ-साथ अपने ऊपर भरोसे की भी अभिव्यक्ति है। यह छिपा नहीं है कि भारत और रूस के बीच दूरी बनाने के मकसद से अमेरिका ने भारत पर रूस से तेल न खरीदने का दबाव बनाने की भी कोशिश की। यह एक तरह से अमेरिका के अपने असुरक्षाबोध का सूचक और जल्दबाजी में किया गया फैसला था। मगर भारत ने अपनी जरूरत और हितों के अनुरूप ही इस संबंध में अपना रुख तय किया और रूस से तेल की खरीदारी जारी रखी।
भारत अपने फैसले लेने में सक्षम
यों भी, भारत और रूस के बीच पुराने और मित्रतापूर्ण संबंध रहे हैं और दोनों देश एक-दूसरे का सम्मान करते रहे हैं। इस क्रम में रूस ने कभी भी इस बात के लिए दबाव नहीं बनाया कि भारत किसी अन्य देश के साथ कैसा संबंध रखे। इसे भी रूसी विदेश मंत्री ने दर्ज किया और कहा कि भारत अपने फैसले लेने में सक्षम है और हम उसके राष्ट्रीय हितों तथा विदेश नीति का सम्मान करते हैं।
भारत-रूस के बीच लंबे समय से परस्पर सहयोग आधारित संबंध है, जिसे अब नए दौर में अहम रणनीतिक साझेदारी के तौर पर देखा जाता है। इसी क्रम में दिसंबर में रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन की प्रस्तावित भारत यात्रा के दौरान व्यापार, सैन्य, तकनीकी सहयोग, वित्त, स्वास्थ्य, उच्च प्रौद्योगिकी सहित अन्य कई क्षेत्रों में आपसी सहयोग पर चर्चा की संभावना है। जाहिर है, तमाम उतार-चढ़ाव के बावजूद रूस के साथ भारत के संबंध परस्पर सम्मान और हित के मूल्यों पर आधारित हैं और रूसी विदेश मंत्री ने इसी को रेखांकित किया है।