दुनिया भर में दिनोंदिन सामरिक चुनौतियां बढ़ रही हैं। हथियारों को अधिक मारक, कारगर और रणनीतिक रूप से सक्षम बनाने की होड़ तेज हो रही है। इसलिए हथियारों का बाजार लगातार विस्तृत हो रहा है। बहुत सारे देश प्रतिरक्षा व्यय में बढ़ोतरी करते देखे जाते हैं। अब आमने-सामने के युद्ध का दौर लगभग समाप्त हो गया है। हवाई और लक्षित हमले से दुश्मन को पराजित करने की कोशिश की जाती है। फिर, अब कोई भी युद्ध केवल दो देशों का मामला नहीं रह गया है। इसमें बहुध्रुवीय रणनीति अपनाई जाने लगी है। ऐसे में भारत युद्ध की स्थितियों से निपट पाने में कितना सक्षम है, इसका आकलन स्वाभाविक है।

पिछले दिनों पहलगाम हमले के बाद भारत ने पाकिस्तान के आतंकी ठिकानों पर लक्षित हमले किए, तो उसके नतीजों को केवल दुश्मन देश के मुकाबले अपने शौर्य प्रदर्शन तक सीमित करके नहीं देखा जा रहा। उसमें देश की सेना ने अपनी तैयारियों, कमियों और तकनीकी क्षमता का भी आकलन करना शुरू कर दिया है। इस संदर्भ में प्रमुख रक्षा अध्यक्ष ने कहा कि युद्ध का मैदान अब कृत्रिम मेधा, मशीन लर्निंग, एलएलएम और क्वांटम तकनीक से संचालित हो रहा है। हमें अपनी नीति, संगठनात्मक संस्कृति और मानव संसाधन को नए सांचे में ढालना होगा।

पिछले कुछ सालों से रक्षा अनुसंधान पर दिया गया है विशेष बल

हालांकि पिछले नौ-दस वर्षों में भारत ने अपनी प्रतिरक्षा प्रणाली को अत्याधुनिक बनाने पर विशेष ध्यान दिया है। वायुसेना को अत्याधुनिक बमवर्षक विमानों, उन्नत संचार प्रणाली युक्त, ध्वनि से कई गुना तेज गति की मिसाइलों आदि से सुसज्जित किया गया है। रक्षा अनुसंधान पर विशेष बल दिया गया है। स्वदेशी तकनीक से विश्वस्तरीय बमवर्षक विमान और पनडुब्बियां तैयार की जा रही हैं। इसके बावजूद भारतीय सेना दुनिया के अत्याधुनिक हथियारों के सामने खुद को पूरी तरह सक्षम नहीं महसूस कर पाती।

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कुछ दिनों पहले वायुसेना प्रमुख ने कहा था कि सेना से संबंधित परियोजनाएं समय पर पूरा नहीं हो पाती हैं। हालांकि सरकार का दावा है कि भारत जल्दी ही दुनिया के प्रमुख आयुध सामग्री आपूर्तिकर्ता देशों की कतार में शामिल होगा। अब बहुत सारे उपकरण और साजो-सामान स्वदेशी तकनीक से देश के भीतर ही तैयार कर लिए जाते हैं। हथियार के मामले में दूसरे देशों पर निर्भरता लगातार कम हो रही है। मगर, जब वायुसेना प्रमुख और रक्षा अध्यक्ष संगठनात्मक ढांचे और रक्षा उपकरणों के मामले में बदलाव की बात कर रहे हैं, तो निस्संदेह इस पर गंभीरता से विचार करने की जरूरत है।

भारत कभी युद्ध के पक्ष में नहीं रहता

भारत बेशक कभी युद्ध के पक्ष में नहीं रहता, हमेशा शांति और सौहार्द की नीति का हिमायती रहा है, मगर पाकिस्तान और चीन की तरफ से उसे लगातार जिस तरह की चुनौतियां मिलती रहती हैं, उसमें वह अपने पारंपरिक हथियारों के जखीरे पर भरोसा करके नहीं चल सकता। पाकिस्तान के साथ संघर्ष में चीन के पाकिस्तान के पीठ पीछे खड़ा हो जाने से कड़ी चुनौती महसूस की गई। इससे भारतीय सेना के लिए नए ढंग से रणनीतिक तैयारी की जरूरत रेखांकित हुई।

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निस्संदेह भारतीय सेना ने जिस तरह पाकिस्तान में आतंकी ठिकानों का लक्ष्य भेदन किया, उससे पूरी दुनिया ने माना कि भारत अत्याधुनिक सामरिक तकनीक का उपयोग करने में सक्षम है। फिर भी बड़ी चुनौती चीन के साथ है, जो उन्नत हथियारों के मामले में अमेरिका, फ्रांस, जर्मनी, रूस आदि बड़े हथियार उत्पादक देशों से लगातार प्रतिस्पर्धा करता रहा है। उम्मीद की जा सकती है कि सरकार सेनाधिकारियों के बयानों को गंभीरता से लेगी।