राष्ट्रीय अपराध रिकार्ड ब्यूरो यानी एनसीआरबी की ताजा रिपोर्ट ने एक बार फिर समाज, पुलिस-प्रशासन और सरकारों के कामकाज की शैली को आईना दिखाया है। दर्ज मामलों पर आधारित आंकड़ों के मुताबिक देखें तो आज भी हर जगह होने वाले अपराधों में महिलाएं सबसे ज्यादा जोखिम से गुजर रही हैं और उनके खिलाफ आपराधिक घटनाएं कम होने के बजाय और बढ़ रही हैं।
एनसीआरबी ने अपनी रिपोर्ट में बताया है कि 2022 में देश भर में महिलाओं के विरुद्ध आपराधिक घटनाओं के कुल चार लाख पैंतालीस हजार दो सौ छप्पन मामले दर्ज किए गए। जबकि इसके पिछले वर्ष यानी 2021 में यह आंकड़ा चार लाख अट्ठाईस हजार दो सौ अठहत्तर और 2020 में तीन लाख इकहत्तर हजार पांच सौ तीन था।
यानी वक्त बीतने के साथ महिलाओं के खिलाफ होने वाले अपराधों की तस्वीर में कोई सुधार आने के बजाय स्थिति और ज्यादा बिगड़ती जा रही है। माना जाता है कि शहरों में कानून-व्यवस्था से लेकर अन्य उपायों की वजह से आम नागरिकों की सुरक्षा के लिहाज से स्थितियां बेहतर हैं। मगर विडंबना है कि गांवों के मुकाबले शहरों और महानगरों में स्थिति और ज्यादा चिंताजनक हुई है।
स्त्रियों का जीवन महानगरों में अपेक्षया ज्यादा जोखिम से गुजर रहा है। एनसीआरबी की रिपोर्ट के मुताबिक, महिलाओं के खिलाफ अपराधों के मामलों में दिल्ली सबसे ऊपर रही, जो लगातार तीसरे साल उन्नीस महानगरीय शहरों में सबसे अधिक है। राज्यों में उत्तर प्रदेश में महिलाओं के खिलाफ अपराधों की सबसे ज्यादा प्राथमिकी दर्ज हुई।
जिस दौर में देश के हर स्तर पर आगे बढ़ने और व्यवस्था में बड़े बदलाव का हवाला दिया जा रहा है, उसमें महिलाओं के जीवन पर जोखिम में लगातार बढ़ोतरी कैसे हो रही है! आमतौर पर सभी सरकारें महिलाओं की सुरक्षा को लेकर अनेक घोषणाएं करती रहती हैं। मगर साफ देखा जा सकता है कि सामाजिक कल्याण कार्यक्रमों से लेकर जितने भी कदम उठाए जाते हैं, उससे जमीनी स्तर पर महिलाओं के जीवन को सहज और सुरक्षित बनाने में कोई ठोस कामयाबी नहीं मिली है।
आखिर क्या कारण है कि आज भी घर से बाहर आवाजाही के रास्तों से लेकर काम की जगहों, यहां तक कि घरों के भीतर भी महिलाओं को बहुस्तरीय जोखिम का सामना करना पड़ रहा है? हत्या, बलात्कार, अपहरण जैसे जघन्य वारदात का शिकार होने को गंभीर अपराधों की श्रेणी में माना जाएगा, लेकिन एनसीआरबी की रिपोर्ट यह भी कहती है कि भारतीय दंड संहिता के तहत महिलाओं के खिलाफ 31.4 फीसद आपराधिक घटनाएं पति या उसके रिश्तेदारों द्वारा क्रूरता की थीं।
सवाल है कि वक्त के साथ चतुर्दिक विकास, नए सख्त कानूनी प्रावधान और व्यवस्थागत सुधार के बीच महिलाएं कहां हैं? आमतौर पर सभी पार्टियों का यह चुनावी नारा और वादा होता है कि वे सत्ता में आने पर हर स्तर पर महिलाओं की सुरक्षा सुनिश्चित करेंगी। मगर हकीकत यह है कि हर अगले साल एनसीआरबी के आंकड़ों से लेकर सभी अध्ययनों में यही अफसोसनाक तस्वीर होती है कि महिलाएं कहीं भी खुद को सुरक्षित और सहज महसूस नहीं कर पातीं।
कानून-व्यवस्था, पुलिस-प्रशासन की उदासीनता का आलम यह है कि महिलाओं के खिलाफ अपराध करने वालों के भीतर शायद ही कभी खौफ दिखता हो। सामाजिक विकास का सवाल हाशिये पर होने की वजह से आम लोगों के भीतर भी स्त्रियों और उनके मुद्दों को लेकर जरूरी संवेदनशीलता का अभाव दिखता है। अगर देश की महिलाएं हर जगह खुद को असुक्षित पाती हैं, तो विकास के आंकड़ों और दावों का क्या मतलब रह जाता है?