राजनीतिक यात्राएं पहले भी राजनेता करते रहे हैं, मगर जिस तरह का टकराव भारत जोड़ो न्याय यात्रा और असम सरकार के बीच देखने को मिल रहा है, वैसा शायद कभी नहीं हुआ। हालांकि इसके कयास पहले से लगाए जा रहे थे, क्योंकि कांग्रेस नेता राहुल गांधी और असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्व सरमा के बीच पहले से तल्ख रिश्ते रहे हैं।
यात्रा के असम में प्रवेश करते ही राहुल गांधी ने असम सरकार पर तीखा प्रहार कर दिया। उसे देश की सबसे भ्रष्ट सरकार कह दिया। उनकी प्रतिक्रिया में हिमंत बिस्व सरमा ने पूरे गांधी परिवार को ही भ्रष्ट करार दे दिया। ऐसी बयानबाजियां दलगत राजनीति में कोई नई बात नहीं हैं। पक्ष और प्रतिपक्ष एक-दूसरे पर, खासकर चुनाव नजदीक आने पर, ऐसे जुबानी हमले करते ही हैं।
मगर जैसा कि कांग्रेस का आरोप है, राहुल गांधी की यात्रा में शामिल वाहनों पर पथराव किया गया, उसे शायद ही कोई उचित माने। फिर मुख्यमंत्री खुद इस यात्रा को अनुशासित करने के नाम पर मैदान में उतर आए। उन्होंने कानून-व्यवस्था बिगाड़ने और लोगों को उकसाने के आरोप में यात्रा में शामिल कुछ लोगों के खिलाफ मुकदमा दर्ज करने का आदेश दे दिया। उधर असम प्रशासन ने राहुल गांधी को श्रीमंत शंकरदेव के मंदिर जाने से रोक दिया। गुवाहाटी शहर में भी यात्रा को प्रवेश की इजाजत नहीं दी गई।
यह ठीक है कि कानून-व्यवस्था राज्य सरकार का विषय है और अगर उसे लगता है कि किसी यात्रा या राजनीतिक गतिविधि से सामान्य जनजीवन प्रभावित हो सकता, सामाजिक सौहार्द बिगड़ सकता या फिर यात्रियों की सुरक्षा को खतरा पैदा हो सकता है, तो वह उसे रोक सकती है। मगर सवाल यह भी है कि ऐसी यात्राओं के रास्ते अचानक तय नहीं होते, पहले ही प्रशासन से इसकी इजाजत ले ली जाती है, फिर असम सरकार को वहां यात्रा पहुंचने के बाद ऐसे खतरे क्यों समझ आए? इससे यही संदेश गया है कि असम सरकार को यह यात्रा राजनीतिक रूप से रास नहीं आ रही है।
राजनीतिक नफे-नुकसान का आकलन हर राजनीतिक दल करता है, इसमें कोई बुराई नहीं। मगर एक लोकतांत्रिक व्यवस्था में सरकारों से प्रतिरोधी आवाजों का सम्मान करने की अपेक्षा की जाती है। जब एक बार न्याय यात्रा का रास्ता तय हो गया था, तो उसे चलने दिया जाता, तब शायद ऐसे विवाद की नौबत न आती। असम के मुख्यमंत्री ने यात्रा के मार्ग में अवरोध खड़े करने की कोशिश करके बेवजह अपने खिलाफ नाराजगी को न्योता दे दिया।
हालांकि राहुल गांधी असम सरकार की अड़चनों का भरपूर राजनीतिक लाभ उठाने का प्रयास कर रहे हैं, मगर उनसे भी लोकतांत्रिक मर्यादाएं समझने की अपेक्षा की जाती है। विपक्षी दल का नेता होने के नाते उन्हें सत्ता पक्ष की कमियां गिनाने का हक तो है, मगर सीमा में रहते हुए ही उन्हें बातें बोलनी चाहिए। जैसा कि हिमंत बिस्व सरमा का आरोप है, उनके बयानों से लोगों में उत्तेजना पैदा हो रही है, राहुल गांधी से भाषा और तथ्यों का ध्यान रखने की स्वाभाविक अपेक्षा की जाती है।
छिपी बात नहीं है कि राहुल गांधी की यात्रा दलगत फायदे के लिए निकाली गई है। उसमें जहां भी कांग्रेस के अलावा दूसरे दलों की सरकार है, वे उस पर हमले करेंगे ही। मगर अभी तो यह यात्रा शुरू हुई है, इसे अन्य कई ऐसे राज्यों से होकर गुजरना है, जहां कांग्रेस की सरकार नहीं है। अगर उनका यही आक्रामक तेवर रहा, तो मुश्कलें और मिलेंगी।