अरुणाचल प्रदेश पर चीन ने एक बार फिर अपनी दावेदारी दिखाने की कोशिश की है। वहां के नागरिक मामलों के मंत्रालय ने अपनी आधिकारिक वेबसाइट पर अरुणाचल की तीस जगहों के नाम जारी किए हैं। पिछले सात वर्षों में यह चौथी बार है, जब चीन ने अरुणाचल की जगहों के भारतीय नामों को बदल कर चीनी नाम जारी किए हैं। अरुणाचल को वह जंगनान कहता और उसे दक्षिणी तिब्बत का हिस्सा बता कर उसे अपने नक्शे में दिखाता रहा है। हालांकि भारत ने हर बार उसकी ऐसी हरकतों का पुरजोर विरोध किया और दोहराया है कि अरुणाचल भारत का अभिन्न हिस्सा है और रहेगा। मगर चीन वास्तविक नियंत्रण रेखा पर घुसपैठ करने की कोशिशों से बाज नहीं आता। उसके ताजा कदम के पीछे की वजहें समझी जा सकती हैं।

पिछले महीने प्रधानमंत्री ने अरुणाचल में सैन्य सुरंग का उद्घाटन किया था, तब भी चीन ने आपत्ति दर्ज की थी। दरअसल, उसी के बाद से चीन को लगता है कि भारत के अरुणाचल वाले हिस्से पर उसके कब्जे की रणनीति अब कामयाब नहीं होने पाएगी, क्योंकि इस सुरंग के खुल जाने से चीन के बहुत करीब तक भारतीय सेना की आसान पहुंच हो सकेगी। प्रधानमंत्री की अरुणाचल यात्रा के बाद अमेरिका ने भी कह दिया कि अरुणाचल को वह भारतीय क्षेत्र के रूप में मान्यता देता है और वास्तविक नियंत्रण रेखा के पार सैन्य या असैन्य घुसपैठ या अतिक्रमण के जरिए क्षेत्रीय दावे करने के किसी भी एकतरफा प्रयास का दृढ़ता से विरोध करता है। इससे चीन की तिलमिलाहट और बढ़ गई।

दरअसल, चीन इसी तरह धौंस-पट्टी से या चोरी-छिपे वास्तविक नियंत्रण रेखा पार कर भारतीय क्षेत्र में अतिक्रमण करने का प्रयास करता रहा है। गलवान घाटी में उसके सैनिक इसी कोशिश के तहत घुसे थे, जिसे भारत ने पूरी ताकत से नाकाम कर दिया था। हालांकि बताया जाता है कि अब भी भारत के कुछ हिस्सों पर उसने अवैध तरीके से कब्जा कर रखा है। मगर इस तरह अंतरराष्ट्रीय संधियों का उल्लंघन कर और अपने नक्शे में पड़ोसी देश के हिस्से को दिखा कर कोई देश उस भूभाग का अधिकारी नहीं बन सकता।

चीन इस तथ्य को नहीं झुठला सकता कि अरुणाचल को वह जिस तिब्बत का दक्षिणी हिस्सा बताता है, उस तिब्बत पर उसने खुद अवैध रूप से कब्जा कर रखा है। अंतरराष्ट्रीय संधि के मुताबिक तिब्बत उसका हिस्सा नहीं, बल्कि स्वतंत्र राष्ट्र है। इस तरह चीन दो-दो भूभागों पर अवैध दावेदारी जताता रहा है।

चीन अपनी विस्तारवादी नीतियों के तहत किस तरह पड़ोसी देशों, खासकर भारत की सीमा से सटे देशों में अपनी उपस्थिति बनाए रखने के तरह-तरह के हथकंडे अपनाता रहा है, वह अंतरराष्ट्रीय समुदाय से छिपा नहीं है। पाकिस्तान, श्रीलंका, मालदीव आदि को वित्तीय मदद पहुंचा कर वह उनके बंदरगाहों आदि पर लंबी अवधि का करार करके कब्जा जमा चुका है। दरअसल, भारत का आर्थिक विकास और दुनिया में एक ताकतवर शक्ति के रूप में उदय चीन को लगातार खटकता रहा है। फिर, अमेरिका के साथ बढ़ती उसकी नजदीकी भी उसे रास नहीं आती। इसलिए मनोवैज्ञानिक दबाव बनाने की मंशा से वह भारत के आसपास अपनी सामरिक और जासूसी गतिविधियां चलाने की कोशिश करता देखा जाता है। अन्यथा चीन इस बात से अनजान नहीं होगा कि किसी देश के किसी भूभाग का नाम बदल कर और उसे अपने नक्शे में दिखा कर उस पर कब्जा नहीं किया जा सकता।