नदियों के पानी की गुणवत्ता में लगातार गिरावट और उनके विषाक्त होने को लेकर लगातार जताई जाने वाली चिंता के बरक्स हालत यह है कि यमुना और गंगा जैसी नदियों का पानी भी कई जगहों पर उपयोग के लायक नहीं रह गया है। जबकि इन नदियों को प्रदूषण से बचाने के लिए कई योजनाएं बनाई गईं और अकूत धन खर्च किए गए। मगर हकीकत सब जानते हैं कि इन नदियों की दशा क्या है। विडंबना यह है कि नदियों के लगातार प्रदूषित होते जाने को लेकर चिंता तो जताई जाती है, मगर उसके मूल कारकों पर गौर करने और उन पर रोक लगाने को लेकर वादों और घोषणाओं से आगे बात नहीं बढ़ पाती। घरों से लेकर कारखानों तक से निकलने वाला पानी कई बार खतरनाक रसायनों से घुला होता है और वह नालों से चलते हुए नदी में मिल कर प्रदूषण और पर्यावरण की एक जटिल तस्वीर बनाता है। इस तरह के कारणों पर लंबे समय से नजर रहने के बावजूद नदियों को प्रदूषित करने वाले इस कारक की अनदेखी की गई।

यह कोई छिपा तथ्य नहीं है कि दिल्ली में कपड़ों की रंगाई करने वाले अवैध कारखानों की वजह से भी यमुना के जीवन को किस स्तर का नुकसान हो रहा है। लेकिन कई बार इस ओर ध्यान जाने के बावजूद ऐसे अवैध कारखानों पर रोक लगाने की ठोस पहल नहीं हुई। अब राष्ट्रीय हरित अधिकरण यानी एनजीटी ने उच्चतम न्यायालय की ओर से नियुक्त निगरानी समिति, केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) और दिल्ली प्रदूषण नियंत्रण समिति (जीपीसीसी) को राष्ट्रीय राजधानी में रंगाई के अवैध कारखानों के खिलाफ कार्रवाई करने का निर्देश दिया है।

यों जिन इलाकों में इस तरह की अवैध रंगाई इकाइयां संचालित करने की शिकायतें आई थीं, वहां लंबे समय से ऐसा चल रहा था। हैरानी की बात यह है कि संबंधित महकमों की ओर से किसी भी इलाके में हर गतिविधि की निगरानी करने के दावों के बावजूद ऐसी शिकायतें अक्सर आती रहती हैं। एनजीटी ने जिस मामले में कार्रवाई करने का निर्देश दिया है, उसमें दावा किया गया है कि दिल्ली के बिंदापुर, मटियाला, रणहौला, ख्याला, मीठापुर, बदरपुर, मुकुंदपुर और किरार इलाकों में बिना अनुमति के रंगाई कारखाने चलाए जा रहे हैं।

कई बार इंसानी आबादी वाले इलाकों में भी बिना इजाजत के संचालित रंगाई और धुलाई के ऐसे कारखानों में जिन रसायनों का प्रयोग किया जाता है, उसके जोखिम से आम लोग अनजान ही रहते हैं। जबकि ऐसे रसायनों को नालों में बहाने से होने वाले प्रदूषण के चलते स्वास्थ्य संबंधी कई परेशानियां खड़ी हो सकती हैं। इसकी वजह से पीने के पानी से लेकर वायु तक प्रदूषित हो जा सकता है। दिल्ली के कई नालों में बहते हुए ये खतरनाक रासायनिक कचरे यमुना में जाते हैं, जो पहले ही कई अन्य वजहों से प्रदूषण की गहरी समस्या से जूझ रही है।

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कायदे से होना यह चाहिए कि प्रदूषण फैलाने वाली ऐसी इकाइयों को अवैध तरीके से संचालित करने से पहले रोका जा पाता, लेकिन अगर कभी इनके खिलाफ कार्रवाई होती है तो उससे बचने के लिए भी इनके मालिकों का शायद कोई तंत्र बना हुआ है। जाहिर है, ऐसे कारखानों की वजह से न केवल यमुना का पानी और भूजल प्रदूषित हो रहा है, बल्कि ये सरकारी तंत्र के सामने आर्थिक नुकसान का भी एक बड़ा जरिया बनते हैं, जिनके कारोबार का आमतौर पर कोई हिसाब-किताब नहीं होता। एनजीटी के ताजा निर्देश के पहले भी ऐसे कारखानों के खिलाफ कार्रवाई की खबरें आ चुकी हैं, मगर आज भी इनकी गतिविधियों को पूरी तरह नहीं रोका जा सका है।