देश भर में तेजाब से हमले की घटनाओं पर आखिर अंकुश क्यों नहीं लग पा रहा है! जबकि खुले बाजार में तेजाब की बिक्री पर पूर्ण प्रतिबंध है और इस तरह के अपराध से निपटने के लिए सख्त कानून मौजूद हैं।
बिहार में पटना जिले के मोकामा में रविवार रात एक महिला पर तेजाब से हमले की वारदात ने राज्य की कानून व्यवस्था पर फिर से सवाल खड़े कर दिए हैं।
तेजाब केवल शरीर को ही नहीं झुलसाता, बल्कि इसकी भयावहता कई बार पीड़ित की पहचान, आत्मविश्वास और सपनों को भी एक त्रासदी में बदल देती है। हमले से पीड़ित की जिंदगी पहले जैसी सामान्य नहीं हो पाती है। पीड़ित महिला के लिए तो महीनों तक चलने वाले उपचार के साथ-साथ समाज की संकीर्ण सोच का सामना करना किसी रोजमर्रा के जख्म से कम नहीं होता।
सवाल है कि आपराधिक कुंठा के शिकार लोगों की तेजाब तक आसान पहुंच कैसे संभव हो पा रही है? जाहिर है कि इसके लिए प्रशासनिक तंत्र में व्याप्त खामियां ही जिम्मेदार हैं।
गौरतलब है कि वर्ष 2013 में सर्वाेच्च न्यायालय के निर्देश पर बाजार में तेजाब की बिक्री पर प्रतिबंध लगा दिया गया था। इस कदम के बाद तेजाब से हमले के मामलों में थोड़ी कमी आई थी, लेकिन पिछले कुछ वर्षों से इनमें फिर से वृद्धि देखी जा रही है।
राष्ट्रीय अपराध रेकार्ड ब्यूरो की एक रपट के मुताबिक, वर्ष 2017 में देश भर में तेजाब से हमले के 244 मामले दर्ज हुए थे। एक अन्य रपट के अनुसार, वर्ष 2021 में ऐसे 176 मामले और 2023 में 207 वारदात दर्ज की गईं।
कानून का सख्ती से पालन क्यों नहीं हो रहा?
इसमें दोराय नहीं कि देश में तेजाब से हमलों के खिलाफ सख्त कानून बनाया गया है, मगर सवाल है कि क्या इस कानून का सख्ती से पालन हो रहा है?
क्या यह जांच एजंसियों की जिम्मेदारी नहीं है कि अवैध रूप से तेजाब की बिक्री करने वालों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की जाए? कई बार तो जांच अधिकारियों की लापरवाही के कारण हमलावर न्याय के कठघरे में आने से बच जाते हैं। जब तक पुलिस और प्रशासनिक तंत्र में व्याप्त खामियों को दुरुस्त नहीं किया जाएगा, तब तक सख्त कानून का प्रभाव भी धरातल पर कम ही नजर आएगा।
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