हिमनदों का तेजी से पिघलना जलवायु परिवर्तन और इसके परिणामस्वरूप आने वाली प्राकृतिक आपदाओं का संकेत है। इससे विनाशकारी बाढ़, जल संकट, समुद्र के स्तर में वृद्धि और पारिस्थितिकी तंत्र में असंतुलन जैसे संकट की स्थिति और गंभीर हो सकती है। यह भारत ही नहीं, बल्कि पूरी दुनिया के लिए चिंता का विषय है। हिमनदों के पिघलने से पहाड़ों पर नई झीलें बन रही हैं और पहले से बनीं झीलों का दायरा भी बढ़ रहा है, जो कभी भी आसपास के इलाकों में भयंकर तबाही मचा सकती हैं।

केंद्रीय जल आयोग की हालिया रपट में कहा गया है कि भारत के हिमालयी क्षेत्र में 432 हिमनद झीलों का आकार चिंताजनक रूप से बढ़ रहा है। इस वर्ष जून के दौरान इन झीलों के जल क्षेत्र में वृद्धि देखी गई है। सवाल यह है कि ये झीलें बढ़ते पानी का दबाव आखिर कब तक झेल पाएंगी? ऐसे में इस संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता कि भविष्य में जल का यह अथाह भंडार बड़ी आपदाओं का कारण बन सकता है। इसलिए जरूरी है कि इन हिमनद झीलों का गहन अध्ययन किया जाए और इनकी नियमित रूप से निगरानी की जाए।

केंद्रीय जल आयोग की रपट के मुताबिक, लद्दाख, जम्मू-कश्मीर, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, सिक्किम और अरुणाचल प्रदेश के हिमालयी क्षेत्र में हिमनद तेजी से पिघल रहे हैं और वहां बनी झीलों का आकार लगातार बढ़ रहा है। भारत में हिमनद झीलों का कुल क्षेत्रफल वर्ष 2011 में 1,917 हेक्टेयर था, जो वर्ष 2025 में बढ़ कर 2,508 हेक्टेयर हो गया। यानी इन झीलों के क्षेत्रफल में 30.83 फीसद की वृद्धि हुई है, जो आसपास की आबादी के लिए कभी भी प्रलयकारी साबित हो सकती है।

अरुणाचल प्रदेश में सबसे अधिक 197 विस्तारित हिमनद झीलें हैं

अरुणाचल प्रदेश में सबसे अधिक 197 विस्तारित हिमनद झीलें हैं। इसके बाद लद्दाख में 120, जम्मू-कश्मीर में 57, सिक्किम में 47, हिमाचल प्रदेश में छह और उत्तराखंड में पांच हिमनद झीलों का क्षेत्रफल बढ़ा है। देहरादून स्थित वाडिया हिमालय भू-विज्ञान संस्थान और दून विश्वविद्यालय के एक अध्ययन में भी पाया गया है कि उत्तराखंड में हिमनदों के पिघलने से बन रही झीलों में मिट्टी, मलबा और पत्थर भी जमा हो रहे हैं। प्रदेश में पिछले दस वर्षों में हिमनद झीलों की संख्या 19.2 फीसद तक बढ़ी है। इससे साफ है कि खतरा लगातार बढ़ रहा है।

पिघलती बर्फ बहता जीवन, क्या हम सुन रहे हैं विनाश की आहट? बड़ी त्रासदी है जलवायु परिवर्तन की चेतावनी

वैज्ञानिक अध्ययनों से यह बात साफ हो चुकी है कि बढ़ता वैश्विक ताप और जलवायु परिवर्तन हिमनदों के पिघलने का मुख्य कारण है। इसका नतीजा न केवल विनाशकारी बाढ़ के रूप में देखने को मिल सकता है, बल्कि गंभीर जलसंकट जैसी स्थितियां भी पैदा हो सकती हैं। ऐसे में जरूरी है कि ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन में कमी लाकर और नवीकरणीय ऊर्जा को बढ़ावा देकर सतत विकास के माडल पर ध्यान केंद्रित किया जाए। सरकार, समाज, विज्ञान और जनमानस को मिल कर इस चुनौती से निपटने के उपायों पर काम करना होगा।

जिन पर्वतीय इलाकों में हिमनद झीलों का विस्तार हो रहा है, वहां निचले इलाकों में रह रहे समुदायों के लिए वास्तविक समय पर आधारित निगरानी प्रणाली और उपग्रह-आधारित सतर्कता एवं पूर्व-चेतावनी तंत्र स्थापित किया जाना चाहिए। साथ ही पहाड़ों पर ऐसी गतिविधियों को भी सीमित करने की अत्यंत जरूरत है, जिनसे पर्यावरण को नुकसान हो रहा है, जो भविष्य में किसी बड़ी त्रासदी का कारण बन सकता है।