इस वर्ष की गर्मी को लेकर जिस स्तर के संकट के अनुमान पिछले कई महीनों से व्यक्त किए जा रहे थे, वे जमीन पर उतरते दिख रहे हैं। दिल्ली में भयंकर लू की चपेट में आने से सत्रह लोगों की मौत की खबर आ चुकी है और इस संख्या में बढ़ोतरी की आशंका जताई जा रही है। धूप की तपिश सहनशक्ति की सीमा के पार करने से बीमार हुए लोग जितनी तादाद में अस्पतालों में भर्ती कराए जा रहे हैं, उससे पता चलता है कि इस गर्मी की मार पिछले कई वर्षों के मुकाबले ज्यादा पड़ रही है। यों तो देश भर में इस बार तापमान जिस स्तर पर सता रहा है, वह परेशान करने वाला है, मगर दिल्ली में न्यूनतम तापमान ने भी पिछले पचपन वर्ष का रिकार्ड तोड़ दिया।

मौसम विभाग के सफदरजंग केंद्र के मुताबिक 18 जून की रात को न्यूनतम पारा सामान्य से आठ डिग्री ज्यादा यानी 35.2 डिग्री सेल्सियस दर्ज किया गया। हालत यह है कि दोपहर के समय के तापमान ने बहुत सारे लोगों के सामने न केवल सामान्य दिनचर्या, बल्कि जीवन तक का संकट पैदा कर दिया है। कई राज्यों में स्कूलों की बंदी को लेकर नए निर्देश जारी करने पड़े।

एक ओर ऐसे तमाम लोग हैं, जिनके सामने अपनी जिंदगी चलाने के लिए जानलेवा लू के बीच भी काम करने की मजबूरी है, तो दूसरी ओर सरकारी स्तर पर शायद ही ऐसे इंतजाम किए जाते हैं, जिनसे खुले आसमान के नीचे जानलेवा तापमान और जोखिम के बीच हाड़तोड़ मेहनत करने वालों को थोड़ी राहत मिल सके। कड़ाके की ठंड में जिस तरह बचाव के लिए कंबल और रैन बसेरे बनाए जाने को लेकर कुछ कदम उठाए जाते हैं, उस तरह धूप से बचाव के घटते ठौर के समांतर एक समय जगह-जगह दिखने वाले प्याऊ या मुफ्त पानी के इंतजाम अब शायद ही कहीं दिखते हैं।

हालांकि मौसम के मिजाज को देखते हुए बहुत सारे लोग बेहद जरूरी काम होने पर ही घर से निकलते हैं, मगर संतोषजनक आवास और कामकाज की जगहों पर बचाव के उपायों के अभाव के बीच कई लोग लू की तपिश में दम तोड़ दे रहे हैं। मौसम की गति को थामना शायद असंभव है, मगर सरकार अगर लू से बचाव और बीमार होने वालों के इलाज को लेकर मानवीयता के लिहाज से कुछ कदम उठाए तो कई लोगों की जान बचाई जा सकती है।