हरियाणा के हिसार में एक पुलिसकर्मी की हत्या कानून से बेखौफ और हिंसक होते माहौल की त्रासद हकीकत है। लोगों और खासतौर पर युवाओं के बीच सुनने, समझने एवं सोचने की प्रवृत्ति इस कदर कम देखी जा रही है कि उचित सलाह या मनाही के बाद उस पर विचार करने के बजाय वे तुरंत आक्रामक हो जाते हैं। लोग अपनी मनमानी के आगे दूसरों की मुश्किलों पर गौर करना जरूरी नहीं समझते। यह सामाजिक सरोकार में बड़ी गिरावट है, लेकिन इसकी एक वजह सरकार की वह नाकामी भी है, जिसमें कानून का खौफ हर जरूरी जगह पर नहीं दिखता।
अव्वल तो यह व्यक्ति की अपनी समझ होनी चाहिए कि उसकी गतिविधियों से किसी को परेशानी तो नहीं हो रही, लेकिन विडंबना यह है कि गलत करने पर रोकने या समझाने-बुझाने पर आजकल लोग इस कदर उग्र हो उठते हैं कि वे किसी की जान लेने से भी नहीं कतराते। हिसार में एक पुलिस उपनिरीक्षक ने सिर्फ इतना भर किया था कि उन्होंने घर के आगे हंगामा कर रहे लोगों को रोकने की कोशिश की थी। उनके डांटने पर युवक चले गए, लेकिन बाद में आकर उपनिरीक्षक पर ईंटों से हमला कर उनकी हत्या कर दी।
पुलिस और कानून-व्यवस्था का खौफ शायद ही कहीं दिख रहा
यह अफसोसनाक है कि आजकल गलत कार्यों पर टोकने भर से कुछ सामान्य उत्पाती जघन्य अपराध करने से भी नहीं हिचकते हैं। अनेक वजहों से सामाजिकता के कमजोर होते तंतु और सोचने-समझने की भटकती दिशा ने खासतौर पर बहुत सारे युवाओं को उत्तेजना और उन्माद को ही सच मानने की राह पर ला दिया है। इसके समांतर पुलिस और कानून-व्यवस्था का खौफ शायद ही कहीं दिखता है, ताकि युवाओं के बीच अपराध की ओर बढ़ते कदम रुक सकें।
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ऐसी स्थिति में किसी भी वजह से एक जगह जमा हुए कुछ युवक न केवल दूसरे की सुविधाओं या परेशानियों को नजरअंदाज करते हैं, बल्कि अराजकता को अपना हक समझने लगते हैं। जब इसके परिणाम के तौर पर कोई जघन्य अपराध घटित हो जाता है, तब जाकर पुलिस और प्रशासन की नींद खुलती है, लेकिन यह महज जिम्मेदारियों से पल्ला झाड़ने तक सीमित होकर रह जाती है। सवाल है कि लगातार चिंता पैदा करने वाली इस सूरत के लिए कौन जिम्मेदार है और इसका भुक्तभोगी आखिर कौन होगा!
