हरियाणा में बास्केटबाल के दो खिलाड़ियों की मौत को भले ही हादसे के तौर पर देखा जाए, लेकिन यह दरअसल राज्य के समूचे तंत्र में खेलों के प्रबंधन से लेकर व्यवस्था से जुड़े अधिकारियों और वहां की खेल नीति पर एक गंभीर सवाल है। इससे अफसोसनाक और क्या होगा कि बास्केटबाल के ये खिलाड़ी अपनी मेहनत और लगन से देश के लिए कुछ बड़ी उपलब्धि हासिल करना चाहते थे, लेकिन सरकारी अव्यवस्था और लापरवाही की वजह से उनकी जान चली गई।
दोनों खिलाड़ियों की मौत पर व्यापक चिंता उभरने के बाद हुई कार्रवाई में कुछ संबंधित कर्मचारियों या अधिकारी को निलंबित किया गया और सरकार ने सभी खेल मैदानों और बास्केटबाल के पोल या खंभों की जांच के आदेश जारी किए। मगर सवाल है कि जो खंभे हादसे की वजह बने, लंबे समय से जर्जर हालत में होने के बावजूद संबंधित सरकारी महकमों ने उनकी अनदेखी क्यों की। इस लिहाज से देखें तो हादसों में दोनों खिलाड़ियों की मौत के वास्तविक जिम्मेदारों की पहचान और उन्हें कठघरे में खड़ा करने की जरूरत है।
गौरतलब है कि राज्य के रोहतक और बहादुरगढ़ में अभ्यास करने के क्रम में दो खिलाड़ियों के पेट और सीने पर बास्केटबाल का खंभा गिर गया और उनकी मौत हो गई। जो खिलाड़ी अपनी प्रतिभा के बूते भविष्य में उपलब्धियां हासिल कर परिवार से लेकर देश के लिए गर्व का जरिया बन सकते थे, सरकारी लापरवाही की वजह से उनकी जान चली गई। खबरों के मुताबिक, दोनों ही जगह बास्केटबाल का खंभा इस जर्जर हालत में था कि उसमें हल्का जोर पड़ते ही टूट कर गिर गया।
जाहिर है, खंभे का गिरना एक-दो दिन की लापरवाही का नतीजा नहीं हो सकता। रोहतक के लाखनमाजरा स्थित स्टेडियम में करीब पांच सौ खिलाड़ी अभ्यास करते हैं। वे बीते काफी समय से खेल विभाग के अधिकारियों से लेकर मुख्यमंत्री तक से मैदान की गुणवत्ता और उपकरणों को ठीक कराने की मांग कर रहे थे। मगर उनकी मांग पर किसी ने समय पर ध्यान देना जरूरी नहीं समझा।
अंदाजा इससे लगाया जा सकता है कि राज्य में कई अन्य जगहों पर भी खेल मैदानों में जरूरी संसाधनों और उपकरणों की दशा ऐसी है कि खिलाड़ी खेलते या अभ्यास करते हुए हर समय एक तरह के जोखिम से गुजरते हैं। सवाल है कि जो सरकार दो खिलाड़ियों की जान जाने के बाद राज्य के खेल मैदानों में बुनियादी ढांचों की जांच कराने को लेकर सक्रिय दिखी, क्या ऐसा वह पहले नहीं कर सकती थी।
हरियाणा एक खेल प्रधान राज्य रहा है। यहां के बहुत सारे खिलाड़ियों ने अपनी क्षमताओं के साथ राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर देश के लिए बड़ी-बड़ी उपलब्धियां अर्जित की हैं। रोहतक में हादसे का शिकार होने वाले हार्दिक राठी राष्ट्रीय स्तर के खिलाड़ी थे और बहादुरगढ़ के अमन भी भविष्य की संभावना थे।
मगर यहां खेल मैदानों में हुई त्रासद घटनाओं में उनकी मौत बताती है कि सरकार की खेल नीति की हकीकत क्या है और वह खिलाड़ियों के सुरक्षित अभ्यास करने को लेकर किस हद तक लापरवाह है। अब संभव है कि राज्य के खेल परिसरों में संसाधनों और बुनियादी ढांचे में सुधार के लिए सरकार कुछ समय तक सक्रिय दिखे, लेकिन जब तक खिलाड़ियों के अभ्यास और उनकी सुरक्षा को लेकर निरंतर सक्रियता और ईमानदार इच्छाशक्ति को खेल नीति का अनिवार्य हिस्सा नहीं बनाया जाएगा, तब तक बेहतर नतीजों की उम्मीद नहीं की जा सकती।
