बरसात के दिनों में सड़कों के किनारे बने नाले या बड़े गड्ढे अक्सर पानी से भर जाते हैं और उसके खतरे का अंदाजा नहीं होना स्वाभाविक है। विडंबना यह है कि ऐसे गड्ढे या नाले में गिर कर किसी की मौत की घटनाओं को आमतौर पर हादसा मान कर नजरअंदाज कर दिया जाता है और लापरवाही के जिम्मेदार लोग बच जाते हैं। मगर असम के गुवाहाटी में सामने आई एक घटना इस मामले में एक नजीर है। गौरतलब है कि गुवाहाटी में एक निर्माणाधीन उपरिगामी पुल स्थल पर कई नाले और मैनहोल को खुला छोड़ दिया गया था। उसी में एक नाले में गिर जाने की वजह से तीन वर्ष के एक बच्चे की मौत हो गई।
अगर इसे भी महज एक हादसा मान लिया जाता तो शायद इस पहलू पर किसी को सोचने की जरूरत नहीं महसूस होती कि वहां नाले को खुला छोड़ दिया गया था, तो यह वहां ड्यूटी पर तैनात अधिकारियों या कर्मचारियों की लापरवाही थी, जिसने एक बच्चे के जान ले ली। मगर बच्चे के पिता ने कंपनी की लापरवाही की शिकायत की और उसके बाद आरोपी तीन अधिकारियों को गिरफ्तार किया गया।
आवाजाही वाली जगह पर अगर इस तरह की घोर अनदेखी
सवाल है कि किसी भी निर्माण स्थल पर सुरक्षा सुनिश्चित किए जाने के बुनियादी पहलू को लेकर वहां मौजूद अधिकारी सजग और संवेदनशील क्यों नहीं होते। खुला छोड़ दिए गए गड्ढे, नाले या मैनहोल में अगर धोखे से कोई व्यक्ति गिर जाता है और उसे कोई बड़ा शारीरिक नुकसान होता है, तो ऐसी घटना को हादसे के बजाय आपराधिक लापरवाही के तौर पर क्यों नहीं देखा जाए? सवाल है कि लोगों की आम आवाजाही वाली जगह पर अगर इस तरह की घोर अनदेखी की वजह से किसी की जान चली जाती, तो इसके लिए किसे जिम्मेदार ठहराया जाना चाहिए।
सड़कों-रास्तों के आसपास मैनहोल, नाले या गड्ढे को ढकना और पूरी तरह जोखिमरहित बनाने का दायित्व किसका है? अगर कोई महकमा या उसके अधिकारी गड्ढे को ढके जाने को लेकर अपना काम ईमानदारी से पूरा करने के मामले में लापरवाही बरतते हैं और इसका नुकसान किसी व्यक्ति या परिवार को उठाना पड़ता है, तो इसकी पूरी जवाबदेही गड्ढे को खुला छोड़ने वाले लोग, कंपनी, संबंधित विभाग और अधिकारी पर होनी चाहिए।