हरियाणा विधानसभा चुनाव के समय गुरमीत राम रहीम के पैरोल पर बाहर आने को लेकर स्वाभाविक ही सवाल उठने लगे हैं। एक ऐसा व्यक्ति, जो हत्या और बलात्कार जैसे संगीन जुर्म में उम्रकैद की सजा काट रहा हो, वह बार-बार सलाखों से बाहर कैसे चला आता है, यह बड़ा सवाल है। ऐसा अनेक बार हो चुका है। अब तक वह करीब दो सौ पचहत्तर दिन पैरोल या फरलो पर बाहर रह चुका है। इसे महज संयोग नहीं कहा जा सकता कि वह प्राय: उन्हीं दिनों जेल से बाहर आया, जब कहीं न कहीं चुनाव चल रहे थे।

हालांकि इस बार हरियाणा के निर्वाचन आयोग ने उसे हरियाणा से बाहर रहने को कहा है, मगर इतने भर से उसके पैरोल पर सवाल उठने बंद नहीं हो जाते। करीब महीना भर पहले ही पैरोल पर रह कर वह जेल गया था। पूछा जा रहा है कि एक तरफ संगीन मामलों में सजायाफ्ता कैदी को पैरोल मिल जाता है, वहीं बहुत सारे आरोपियों को जमानत नहीं मिल पाती। बहुत सारे कैदियों को नितांत आकस्मिक स्थितियों में भी पैरोल नहीं मिल पाती। क्या राम रहीम के लिए जेल नियमावली अलग है।

हर चुनाव से पहले मिल जाती है राम रहीम को पैरोल

बताया जाता है कि राम रहीम का हरियाणा के कुछ जिलों में खासा प्रभाव है। तो क्या वह हर बार अपने अनुयायियों को कोई राजनीतिक संदेश देने बाहर आता है? इससे पहले वह हरियाणा नगर निकाय चुनाव के समय तीस दिन की पैरोल पर बाहर आया था। आदमपुर विधानसभा उपचुनाव से पहले उसे चालीस दिन की पैरोल मिली थी। हरियाणा पंचायत चुनाव से पहले भी उसे पैरोल मिली थी। राजस्थान विधानसभा चुनाव से पहले उसे उनतीस दिन की फरलो दी गई थी।

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इस तरह बार-बार उसके जेल से बाहर आने पर राज्य सरकार की मंशा पर उचित ही सवाल उठ रहे हैं। इसी तरह गुजरात में बिलकिस बानो के बलात्कारियों को भी पैरोल और फरलो पर बार-बार बाहर भेजा जाता रहा और अंतत: केंद्र की सहमति से राज्य सरकार ने उनकी सजा माफ कर दी थी। सर्वोच्च न्यायालय की फटकार के बाद फिर उन्हें जेल भेजा गया। शायद सरकारों को कानून की तो कोई परवाह नहीं रह गई है, वे लोकलाज और राजनीतिक मर्यादा भी भूल गई हैं।