गुजरात में नशीले पदार्थों की बार-बार जब्ती से यह सवाल अक्सर उठता रहा है कि इसके पीछे कौन लोग हैं। बड़ी कार्रवाई होती है, लेकिन संगठित गिरोह पकड़ में नहीं आते, तो इसमें किसका दोष है? राज्य में पिछले वर्ष मादक पदार्थों की पांच खेप पकड़ी गई थी। इनमें ज्यादातर खेप अरब सागर में जब्त हुई थी। इन सभी मामलों के तार विदेशी माफिया से जुड़े थे। गुजरात तट खासकर मुंद्रा बंदरगाह के जरिए मादक पदार्थ भारत पहुंच रहे हैं, तो स्वाभाविक है कि इसके पीछे यहां के गिरोह भी शामिल होंगे।
इस बंदरगाह पर वर्ष 2021 में इक्कीस हजार करोड़ रुपए की हेरोइन बरामद की गई थी। नशे की दुनिया के इतिहास में यह सबसे बड़ी बरामदगी थी। हैरत की बात है कि नशा करने वाले युवाओं को तो पकड़ लिया जाता है, मगर नशे के सौदागर साफ बच निकलते हैं। यह निराशाजनक ही है कि तटरक्षक बलों की चौकसी के बावजूद एक बार फिर अरब सागर क्षेत्र में अठारह सौ करोड़ का मादक पदार्थ जब्त किया गया।
अपनी हरकतों से बाज नहीं आ रहे नशा बेचने वाले संगठित गिरोह
पकड़े जाने के डर से तस्करों ने इसे समुद्र में फेंक दिया था। पिछले शनिवार की रात चलाए गए एक साझा अभियान में तीन सौ किलो नशीला पदार्थ बरामद होने से साफ है कि संगठित गिरोह अपनी हरकतों से बाज नहीं आ रहे।
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गुजरात में जिस अंतरराष्ट्रीय समुद्री रेखा के पास तस्कर सक्रिय हैं, वह दरअसल समुद्री व्यापार मार्ग है। यहां से कई वाणिज्यिक जहाज आते-जाते हैं। बार-बार हो रही बरामदगी को गंभीरता से लेने की जरूरत है। निस्संदेह ये तस्कर अवैध वस्तुओं को इन जहाजों में किसी तरह छिपा कर ला रहे हैं। ऐसे में समझा जा सकता है कि अरब सागर किस तरह नशे के सौदागरों का प्रवेश द्वार बन गया है।
नशे के जाल से युवाओं को बचाने के लिए सख्त कदम उठाना आवश्यक
अगर इसे रोकने के लिए सख्ती से समन्वित प्रयास नहीं किया गया, तो यह प्रवृत्ति जारी रहेगी। भारतीय अर्थव्यवस्था को चोट पहुंचा रहे तस्करों के पूरे तंत्र को जड़ से खत्म करना ही होगा। नशे के जाल से युवाओं को बचाने के लिए यह कदम उठाना आवश्यक है। माफिया में यह डर पैदा करना होगा कि भारत की कानून व्यवस्था बेहद सख्त है।