किसी भी हादसे का सबसे बड़ा सबक यह होना चाहिए कि वैसी घटना दोबारा न हो, इसके लिए सभी स्तर पर हरसंभव उपाय किए जाएं। मगर ऐसा लगता है कि बार-बार के हादसों के बावजूद सरकारी तंत्र के लिए इस पर गौर करना कोई जरूरी काम नहीं है और उसकी नींद तभी खुलती है, जब किसी बड़े हादसे से लोगों के बीच उपजा आक्रोश तूल पकड़ने लगता है। गुजरात के वडोदरा में एक पुल ढह जाने और उससे हुए जानमाल के नुकसान की घटना सरकारी तंत्र की इसी व्यापक लापरवाही और संवेदनहीनता का सबूत है।

गौरतलब है कि वडोदरा में आणंद और पादरा को जोड़ने वाले व्यस्त पुल का एक हिस्सा अचानक ढह गया। इसकी चपेट में कई वाहन आए और टूटते पुल से महिसागर नदी में गिर गए। खबरों के मुताबिक, इसमें कम से कम सोलह लोगों की जान चली गई और कई अन्य घायल हुए।

इस घटना को भी किसी आम हादसे की तरह देखा जाएगा, मरने और घायल होने वालों के लिए मुआवजे की घोषणा और जांच का आश्वासन जारी कर दिया जाएगा। मगर आमतौर पर ऐसी घोषणाओं के बाद सरकारी रवैया कुछ ही दिन में फिर अपने पुराने ढर्रे पर लौट जाता है और शायद किसी अगले हादसे का इंतजार किया जाने लगता है। यह समझना मुश्किल है कि जिस पुल के जर्जर होने और कभी भी हादसे का शिकार होने की आशंका से जुड़ी खबरें आ चुकी थीं, उस पर यातायात को रोकने और अन्य सुरक्षा इंतजाम करने की जरूरत क्यों महसूस नहीं की गई।

यह बेवजह नहीं है कि अब ऐसे सवाल तीखे रूप में उठाए जा रहे हैं कि गुजरात में इस तरह के खराब गुणवत्ता वाले जानलेवा पुल के बनने और भरभरा कर ढहने का सिरा सरकार के किन-किन महकमों और उसके कर्ता-धर्ता से जुड़ा है और इसके जिम्मेदार लोगों के खिलाफ कोई कार्रवाई क्यों नहीं होती। जिस राज्य के विकास को देश भर में उदाहरण के रूप में पेश किया जाता है, वहां सिर्फ चालीस साल पहले बना पुल इस हालत में पहुंच जाता है तो इसका जिम्मेदार कौन है? क्या ऐसे लोगों की पड़ताल कर उन्हें कानून के कठघरे में खड़ा किया जाएगा?

देश भर में हादसों की महज एक कड़ी है वडोदरा में पुल गिरने की घटना

दरअसल, वडोदरा में पुल गिरने की घटना देश भर में ऐसे हादसों की महज एक कड़ी है। इससे पहले अक्तूबर, 2022 में गुजरात के ही मोरबी शहर में मच्छू नदी पर बना एक पुल नदी में गिर गया था, जिसमें एक सौ पैंतीस लोगों की जान चली गई थी। तब यह खबर आई थी कि सरकार ने सभी पुलों को मजबूती से जांचने और रखरखाव पुख्ता करने का दावा किया है। मगर पुल ढहने की ताजा घटना से सरकारी दावों की हकीकत एक बार फिर सामने आई है। आमतौर पर किसी भी पुल के बनने के वक्त ही उसकी कुल आयु और रखरखाव के बारे में बता दिया जाता है।

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अगर कोई पुल किन्हीं वजहों से जोखिम की हालत में होता है तो उसे बंद कर दिया जाता है। ठोस तरीके से उसकी मरम्मत की जाती है या फिर उसका पुनर्निर्माण किया जाता है। विडंबना यह है कि वडोदरा के जर्जर पुल के जोखिम की आशंका जताए जाने के बावजूद कोई सावधानी नहीं बरती गई। अब सरकार को यह बताने की जरूरत है कि अगर आशंकाओं की जानबूझ कर अनदेखी नहीं की गई तो पुल की हालत के प्रति व्यापक लापरवाही की जवाबदेही किसकी है और कम से कम भविष्य में पुलों को सुरक्षित बनाने को लेकर धरातल पर क्या ठोस कदम उठाए जाएंगे!