वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) में सुधार सोमवार से लागू हो गए। इसके बाद कई आवश्यक वस्तुओं एवं सेवाओं पर कर दरों में कटौती से आम लोगों को राहत मिलने की उम्मीद है। माना जा रहा है कि इससे स्थानीय विनिर्माण आधार को भी मजबूती मिलेगी तथा बचत, निवेश और आर्थिक विकास को बढ़ावा मिलेगा। इसमें दोराय नहीं कि वर्ष 2017 में शुरू हुए जीएसटी के सफर में सुधारों का यह महत्त्वपूर्ण पड़ाव है। इससे न केवल उपभोक्ताओं, बल्कि सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम स्तर के उद्योगों को भी राहत मिलने की बात की जा रही है।
मगर, सवाल यह है कि क्या करों में कटौती का सीधा और तत्काल लाभ अंतिम पंक्ति में खड़े व्यक्ति तक पहुंच पाएगा? हालांकि, सरकार का दावा है कि यह सुनिश्चित करने के लिए माकूल व्यवस्था की जा रही है, लेकिन यह भी सच है कि करों में कटौती के प्रभाव को लेकर आम उपभोक्ताओं के पिछले अनुभव संतोषजनक नहीं रहे हैं। ऐसे में देखना होगा कि मौजूदा कर सुधार उम्मीदों की कसौटी पर कितने खरे उतर पाते हैं।
सिर्फ दो श्रेणियां रखी गई है जीएसटी
जीएसटी सुधारों की एक खास बात यह है कि अब इसमें मुख्य रूप से पांच फीसद और अठारह फीसद की सिर्फ दो श्रेणियां रखी गई हैं। इसके तहत कई आवश्यक वस्तुओं एवं सेवाओं पर कर की दर घटाकर पांच फीसद या शून्य कर दी गई है। जीवन रक्षक दवाएं, जीवन बीमा और स्वास्थ्य बीमा अब कर-मुक्त हो गए हैं। खेती-किसानी के लिए जरूरी कृषि उपकरणों पर कर दरों को भी तर्कसंगत बनाया गया है।
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सरकार का मानना है कि जीएसटी की दरों में कमी से किराने और रोजमर्रा की जरूरत की वस्तुओं के खर्च में करीब तेरह फीसद की बचत होगी, जबकि शिक्षा से जुड़ी सामग्री, कपड़े, जूते और दवाइयों की खरीद पर 7-12 फीसद की बचत का अनुमान है। कम कर, कम कीमतें और सरल नियमों का मतलब है बेहतर बिक्री, कम अनुपालन बोझ और अवसरों में वृद्धि होगी। इससे छोटे उद्योगों, व्यापारियों और दुकानदारों को भी कारोबार में आसानी होने की उम्मीद है।
करों में कमी से लोगों की बचत में इजाफा होगा
चूंकि, ये कर सुधार त्योहारों की शुरूआत पर नवरात्रि के पहले दिन लागू हुए हैं, इसलिए सरकार की ओर से इन्हें ‘जीएसटी बचत उत्सव’ के नाम से प्रचारित किया जा रहा है। मगर उपभोक्ता के लिए असली उत्सव तब होगा, जब वास्तव में उन्हें कर छूट का सीधा लाभ मिलेगा। एक बड़ी समस्या यह भी है कि जिन कंपनियों के पास पहले से तैयार सामान का भंडार है, क्या वे उस पर दाम कम करेंगी। हालांकि, सरकार की ओर से इसके लिए दिशा-निर्देश बनाए गए हैं, लेकिन आम उपभोक्ताओं का एक वर्ग अब भी भ्रम की स्थिति में है। जीएसटी दरों में कटौती का एक मकसद भारत पर अमेरिका की ओर से लगाए गए पचास फीसद शुल्क के प्रभाव को कम करना भी है।
आर्थिक विशेषज्ञ भी इस बात से सहमत हैं कि करों में कमी से लोगों की बचत में इजाफा होगा और उनकी खरीद क्षमता बढ़ेगी, जिसके परिणामस्वरूप देश में वस्तुओं की खपत भी बढ़ेगी। करों में राहत के साथ-साथ स्वदेशी उत्पादों को तरजीह देने और देश में उनकी खपत को बढ़ाने का मसला भी अहम है। बाजार में विदेशी सामान की चमक-दमक उपभोक्ताओं को अपनी ओर आकर्षित करती है। सरकार की ओर से उत्पादों को प्रोत्साहित करने के लिए योजनाएं शुरू की गई हैं, लेकिन इन्हें व्यापक बनाने की जरूरत है। तभी आयात पर निर्भरता कम होकर आत्मनिर्भर भारत का सपना साकार हो पाएगा।