पिछले कई वर्षों से माल एवं सेवा कर यानी जीएसटी प्रणाली और इसकी दरों को लेकर सवाल उठ रहे थे, लेकिन इस मसले पर सरकार के भीतर कोई खास उत्साह नहीं दिख रहा था। नतीजतन, ऐसी बहुत सारी वस्तुओं पर भी कर के रूप में लोगों को नाहक ही ज्यादा रकम चुकानी पड़ रही थी, जिन्हें अनिवार्य आवश्यकताओं के रूप में जाना जाता है। अब आखिरकार सरकार ने जीएसटी की दरों में बड़े बदलाव की घोषणा की है और इसे आम जनता के लिए भारी राहत के तौर पर पेश किया जा रहा है।

हालांकि कई वस्तुओं और सेवाओं पर अब तक लागू कर की दरों में जिस तरह कमी की गई है, उससे अर्थव्यवस्था को भी गति मिलने की उम्मीद जताई जा रही है। इसके तर्कसंगत होने को लेकर जिस तरह के सवाल उठते रहे हैं, उसमें यह निश्चित रूप से एक बड़ा बदलाव है, लेकिन विपक्षी दलों ने इसे बहुत देर से उठाया गया कदम बताया है।

अब सिर्फ पांच और अठारह फीसद की दर लागू

गौरतलब है कि बुधवार को जीएसटी परिषद की बैठक में जिन नई दरों को मंजूरी दी गई, उसके तहत बारह फीसद और अट्ठाईस फीसद के स्तर को खत्म कर दिया गया है और अब सिर्फ पांच और अठारह फीसद की दर लागू रहेगी। मगर कुछ खास वस्तुओं पर जीएसटी को चालीस फीसद तक बढ़ा दिया गया है। इसी महीने की बाईस तारीख से लागू होने वाले करों के नए ढांचे में जो बदलाव किए गए हैं, उसके तहत लोगों के लिए आम उपयोग में आने वाली वस्तुओं और सामान्य सेवाओं के मामले में काफी राहत दी गई है।

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मसलन, खाद्य और डेयरी उत्पाद, दवाएं, तेल, घी, सूखे मेवे, चपाती आदि रोजमर्रा के इस्तेमाल में आने वाली कई उपयोगी चीजों को पांच फीसद के कर-ढांचे में डाला गया है। जबकि जीवन-बीमा सहित कुछ जीवनरक्षक दवाओं पर जीएसटी शून्य कर दी गई है। वहीं, वातानुकूलन यंत्र, टीवी, प्रोजेक्टर सहित कई इलेक्ट्रोनिक चीजों को अठारह फीसद के स्तर में लाया गया है। इससे इतर, बड़े आकार वाली महंगी कारों के साथ-साथ पान मसाला, सिगरेट, गुटखा और कैफीनयुक्त पेय जैसी कुछ चीजों पर अब चालीस फीसद जीएसटी तय की गई है।

जाहिर है, नए ढांचे का मकसद आबादी के एक बड़े हिस्से के खर्च और उपभोग को राहत के दायरे में लाकर अर्थव्यवस्था को रफ्तार देना है। यह एक आम हकीकत है कि अगर कोई वस्तु लोगों की आय के मुताबिक क्रयशक्ति की सीमा में होती है, तभी वे उसे खरीदने या उसके उपयोग को लेकर सहज होते हैं। कर की दरों में कमी के बाद वस्तुओं या सेवाओं की कीमतों में जो अंतर आएगा, आम इस्तेमाल में आने वाली चीजों की महंगाई में गिरावट आएगी, उससे बड़ी संख्या में लोग उसके उपभोग के दायरे में आ जाएंगे।

बाजार में मांग बढ़ने से उत्पादन में बढ़ोतरी होगी और इस तरह आर्थिक मोर्चे पर अमेरिकी शुल्कों से जो चुनौती पैदा हुई है, उसका सामना करने की दिशा में विकल्प भी तैयार होंगे। यों करीब आठ वर्ष पहले जब जीएसटी को लागू किया गया था, तभी से समय-समय पर अनेक उत्पादों पर कर की दरों में कुछ बदलाव किए गए, लेकिन कई अन्य उत्पादों पर कटौती की मांग होती रही। अब जीएसटी में बदलाव की घोषणा तो हो गई है, लेकिन राज्यों की ओर से जिस तरह राजस्व क्षतिपूर्ति के लिए समय देने की मांग उठी है, उसके मद्देनजर यह देखने की बात होगी कि सरकार इस संबंध में कौन-सा रास्ता निकालती है!