भूजल के अतार्किक दोहन को लेकर लंबे समय से चिंता जताई जाती रही है। इस पर समय रहते रोक लगाने के सुझाव भी दिए जाते रहे हैं। मगर हकीकत यह है कि इस दिशा में अभी तक कोई व्यावहारिक कदम नहीं उठाया जा सका है या जो कदम उठाए भी गए वे कारगर साबित नहीं हो पाए हैं।
इसी का परिणाम है कि अनेक क्षेत्रों में भूजल का स्तर तेजी से घटा और खतरनाक बिंदु के पार पहुंच गया है। सिंधु और गंगा के इलाकों में भूजल का स्तर जोखिम बिंदु को पार कर चुका है। अब संयुक्त राष्ट्र ने चेतावनी दी है कि 2025 तक उत्तर-पश्चिमी क्षेत्र में भूजल का गंभीर संकट पैदा हो सकता है। यह क्षेत्र देश के खाद्यान्न का बड़ा हिस्सा पैदा करता है। इसमें हरियाणा और पंजाब धान और गेहूं का सर्वाधिक उत्पादन करते हैं।
जाहिर है, इन इलाकों में भूजल का स्तर जोखिम बिंदु से नीचे चला जाएगा, तो खाद्यान्न उत्पादन बुरी तरह प्रभावित होगा। संयुक्त राष्ट्र विश्वविद्यालय- पर्यावरण और मानव सुरक्षा संस्थान द्वारा प्रकाशित ‘अंतरसंबद्ध आपदा जोखिम रिपोर्ट 2023’ में कहा गया है कि पंजाब के अठहत्तर फीसद कुएं अतिदोहन का शिकार हैं। जलवायु परिवर्तन के कारण यह चुनौती और विकट होने की आशंका है।
हालांकि नलकूपों के जरिए भूजल के दोहन पर लगाम लगाने के लिए कई जगहों पर कुछ सख्त कदम भी उठाए गए हैं। खासकर पंजाब और हरियाणा में सरकारें किसानों से लगातार अपील करती रही हैं कि वे मौसम से पहले धान की खेती न करें, भूजल का दोहन कम करें। इसके लिए दंड का भी प्रावधान किया गया।
मगर जब उसका असर नजर नहीं आया तो समय से पहले धान की खेती न करने वाले यानी भूजल का दोहन रोकने में मदद करने वाले किसानों को प्रोत्साहन राशि की भी घोषणा की गई। हालांकि जिस तरह इन इलाकों में भूजल का स्तर निरंतर नीचे जा रहा है, उसमें ये कदम बहुत प्रभावी साबित नहीं हो रहे हैं। संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट के अनुसार सत्तर फीसद भूजल का इस्तेमाल खेती के लिए किया जाता है।
ऐसे में खेती-किसानी के तरीके बदलने पर भी जोर दिया जाता रहा है, जिसमें सिंचाई के लिए कम पानी की खपत हो सके। जीन प्रसंस्कृत बीजों वाली फसलों को अधिक पानी की जरूरत होती है, इसलिए अब जैविक खेती को प्रोत्साहित किया जा रहा है। मगर अधिक उत्पादन के लोभ में किसान जीन प्रसंस्कृत बीजों का मोह त्याग नहीं पा रहे।
जलवायु परिवर्तन की वजह से अनेक इलाके सूखे का सामना कर रहे हैं, तो कई इलाकों में अतिवृष्टि देखी जा रही है, जिससे जल संचय के पारंपरिक तरीके विफल साबित हो रहे हैं। इस तरह जमीन से जितना पानी खींचा जा रहा है, उतना नीचे नहीं पहुंचाया जा पा रहा। भूजल का स्तर जोखिम वाले बिंदु के नीचे पहुंच रहा है। हालांकि खेती के अलावा भी बहुत सारी औद्योगिक इकाइयों में भूजल का अंधाधुंध दोहन हो रहा है।
उन पर भी काबू करने की मांग उठती रही है। दरअसल, सूखे के समय भूजल बहुत उपयोगी संसाधन साबित होता है। इसलिए जलवायु परिवर्तन की वजह से सूखे के बढ़ते संकट में भूजल के स्तर को बचाने की जरूरत ज्यादा महसूस की जा रही है। संयुक्त राष्ट्र की ताजा रिपोर्ट के मद्देनजर एक बार फिर सरकारों से अपेक्षा की जाती है कि वे भूजल के अतार्किक दोहन को रोकने के लिए व्यावहारिक और स्थायी उपाय निकालें।