सरकारी विद्यालयों में दाखिले और पढ़ाई-लिखाई के स्तर को लेकर प्राय: असंतोष ही जताया जाता रहा है। मगर इस बार ग्रामीण क्षेत्रों के सरकारी स्कूलों की वार्षिक शिक्षा स्थिति रपट यानी ‘असर’ में यह तथ्य उजागर हुआ है कि सरकारी स्कूलों में दाखिले का स्तर फिर से कोविड काल के पहले के स्तर पर पहुंच गया है, मगर उनमें पढ़ाई-लिखाई का स्तर कुछ बेहतर हुआ है। गौरतलब है कि कोरोना काल से पहले छह से चौदह वर्ष आयुवर्ग के बच्चों का सरकारी स्कूलों में नामांकन हर वर्ष बढ़ रहा था।

2006 से 2018 के बीच सरकारी स्कूलों में बच्चों का दाखिला 18.7 फीसद से बढ़ 2014 तक 30.8 फीसद पर पहुंच गया था। फिर 2018 तक इसी स्तर पर बना रहा। मगर कोरोना काल में सरकारी स्कूलों में छह से चौदह वर्ष आयु के बच्चों का अनुपात 2018 के 65.6 फीसद से बढ़ कर 2022 में 72.9 हो गया। मगर बीते वर्ष में यह अनुपात फिर से 2018 के स्तर पर पहुंच गया, यानी 66.8 फीसद पर वापस आ गया है।

ग्रामीण क्षेत्र के सरकारी स्कूलों में बच्चों के नामांकन में कमी आने का एक कारण निजी स्कूलों की तरफ लोगों का फिर से बढ़ता रुझान बताया जा रहा है। जाहिर है, लोगों का सरकारी स्कूलों में शिक्षा की गुणवत्ता को लेकर भरोसा कायम नहीं रह पाया है। कोरोना काल में इसलिए बहुत सारे लोगों ने अपने बच्चों को निजी स्कूलों से निकाल कर सरकारी स्कूलों में डाला था कि उस वक्त उनकी कमाई बंद हो गई थी। इसमें एक अच्छी बात यह हुई है कि ग्रामीण क्षेत्र के स्कूलों में शिक्षा के स्तर में थोड़ा सुधार हुआ है।

स्मार्ट फोन इस्तेमाल करने वाले बच्चों की संख्या तेजी से बढ़ी है। मगर इसमें चिंता की बात यह भी है कि स्कूलों में पांच वर्ष आयु वर्ग के बच्चों की संख्या लगातार घट रही है। 2018 में यह आंकड़ा 25.6 था, जो 2022 में घट कर 22.7 फीसद हुआ और 2024 में गिर कर चिंताजनक 16.7 फीसद पर पहुंच गया। यानी ग्रामीण क्षेत्रों के स्कूलों में शिक्षा की गुणवत्ता बेहतर करने के लिए अभी बहुत कुछ किया जाना है।