केंद्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड यानी सीबीएसई के नतीजे इस वर्ष भी उत्साहजनक रहे। इन परिणामों के आंकड़ों के विश्लेषण के साथ-साथ इसके सामाजिक पहलू पर भी चर्चा स्वाभाविक है। पिछले कुछ वर्षों से लगातार चले आ रहे रुख के मुताबिक इस वर्ष भी दसवीं और बारहवीं की परीक्षाओं में छात्राओं ने बाजी मारी। हालांकि छात्रों की सफलता का अनुपात भी काफी अच्छा है, मगर आगे होने के जो मानक तय किए गए हैं, उसमें लड़कियों ने लड़कों से बेहतर प्रदर्शन किया है। बारहवीं के नतीजों में कुल 87.33 फीसद विद्यार्थी पास हुए। इस बार 91.52 फीसद लड़कियों ने परीक्षा पास की है, जो लड़कों से 6.40 फीसद ज्यादा है। इसी तरह, दसवीं की परीक्षा में भी 94.75 फीसद लड़कियां सफल हुईं, जो लड़कों के मुकाबले 2.04 फीसद अधिक है।
अवसर मिलने पर हर मोर्चे पर साबित करने की क्षमता
जाहिर है, एक बार फिर लड़कियों ने यह साबित किया है कि यह महज अवसर मिलने की बात है। वे हर मोर्चे पर साबित कर सकती हैं कि एक पुरुष प्रधान समाज में उनकी क्षमताएं कहीं भी लड़कों से कम नहीं हैं। पढ़ाई-लिखाई के तमाम क्षेत्रों में यही देखा गया है कि लड़कियों को जहां भी मौका मिला है, वे लड़कों के मुकाबले अपेक्षा कम संसाधनों में भी बेहतर नतीजे देती हैं।
इसका एक मतलब यह भी निकलता है कि सामाजिक स्तर पर कई तरह की वंचना और बाधाओं के बीच भी वे खुद को बेहतर साबित कर सकती हैं। यह छिपा नहीं है कि जन्म से लेकर बाद के जीवन तक में पढ़ाई-लिखाई से लेकर हर क्षेत्र में उनके सामने किस-किस तरह की अड़चनें आती रही हैं। लड़कियों के प्रति पूर्वाग्रहों और संकीर्ण सोच वाले परिवार और समाज आमतौर पर उनके प्रति सहयोगात्मक रुख नहीं अख्तियार करते हैं।
हालांकि वक्त बदलने के साथ काफी संख्या में माता-पिता अब अपनी बच्चियों की पढ़ाई-लिखाई और उनके बेहतर भविष्य को लेकर सजग हैं और उन्हें प्रोत्साहन देते हैं। प्रतियोगी परीक्षाओं में भी लड़कियों का प्रदर्शन लड़कों से बेहतर होना इस बात का सबूत है। मगर लड़कियों की कामयाबी की यह धमक सार्वजनिक जीवन के अन्य क्षेत्रों में कम दिखती है। सरकार और समाज को इस पहलू पर सजग होना होगा।