मानवीयता के सारे तकाजों को ताक पर रख कर इजराइल जिस तरह गाजा पट्टी को निशाना बना रहा है, उसमें बड़ी संख्या में ऐसे बेकसूर नागरिक मारे जा रहे हैं, जिनका हमास से कोई लेना देना नहीं है। वे सुरक्षित जगह की तलाश में दिन-रात भटक रहे हैं। ऐसे में सबसे अधिक दुर्दशा बच्चों की हुई है। वे न तो स्कूल जा पा रहे हैं और न सुकून से सो पा रहे हैं। युद्ध से मिले आघातों से उनका जीवन बदहाल हो चुका है। कई बच्चे अनाथ हो चुके हैं। हजारों बच्चे इस समय कुपोषण के शिकार हैं। गाजा की गलियों में दम तोड़ते बच्चों को देख कर किसी की भी आंखें नम हो सकती हैं।
दीर अल-बला शहर के पास इजराइल के ताजा हमले में फिर कई बच्चे मारे गए हैं। इनमें सड़क किनारे अपनी गुड़िया के साथ खेल रही एक मासूम बच्ची भी थी, जिसकी मौत ने कई सवाल खड़े किए हैं। गौरतलब है कि गाजा पर फिर से शुरू हुए इजराइली हमले में सिर्फ पिछले एक महीने के दौरान आठ सौ नौ बच्चों की जान चली गई। मध्य गाजा के जावैदा शहर में शांति बहाल होने के साथ जब नागरिक अपनी दिनचर्या में लौट रहे थे, तब ऐसे समय में नागरिक ठिकानों पर इजराइल के हमले को न केवल अनैतिक, बल्कि युद्ध अपराध भी माना जाना चाहिए। आखिर इस तरह बेलगाम हमले का क्या औचित्य था?
यह सोचने की जरूरत है कि गेंद और गुड़िया के साथ सड़क पर खेल रही चार साल की कोई बच्ची कैसे किसी देश का दुश्मन हो सकती है? अपनी घायल बहन को लेकर अस्पताल पहुंचे भाई का यह सवाल किसी को भी कचोट सकता है कि वह क्या कर सकती थी? वह तो पत्थर भी नहीं उठा सकती थी!
दरअसल, युद्ध एक ऐसा उन्माद है जिसमें हमलावर देश यह नहीं देखता कि किसकी मौत हो रही है। इजराइल और हमास के बीच करीब डेढ़ साल से चल रहे युद्ध में बावन हजार फिलस्तीनी मारे जा चुके हैं। इनमें अधिकतर महिलाएं और बच्चे हैं। इस युद्ध में कितने बच्चे बचेंगे, किसी को नहीं मालूम। मगर यह तय है कि गाजा में उनकी खिलखिलाहट वर्षों सुनाई नहीं देगी। निर्दोष नागरिक और उनके बच्चे न मारे जाएं, इसकी जिम्मेदारी इजराइल पर है, लेकिन क्या वह अपनी इस भूमिका को समझ पा रहा है?