नदियों को स्वच्छ बनाने के लिए लंबे समय से चल रही तमाम योजनाओं और कार्यक्रमों के बावजूद यह अभियान अब तक कहां तक पहुंचा है, इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि आज भी गंगा जैसी अहम नदी को स्वच्छ बनाने की कोई नई पहल करनी पड़ रही है। हालत यह है कि अलग-अलग मौके पर लागू दिशानिर्देशों के बावजूद कम से कम मलबा डालने पर भी रोक नहीं लगाई जा सकी है। अब एक बार फिर केंद्र सरकार ने गंगा नदी के किनारे मलबा डाले जाने या गावों का गंदा पानी नदी में गिराने से प्रदूषण का स्तर बढ़ने पर संज्ञान लिया है।
इसके तहत सरकार नदी किनारे स्थित चार हजार गांवों से निकलने वाले लगभग चौबीस सौ नालों को चिह्नित करके इनकी ‘जियो टैगिंग’ करेगी। सरकार इनसे ठोस कचरा प्रवाहित होने से रोकने के लिए एक उपकरण ‘एरेस्टर स्क्रीन’ लगाएगी। यह गंगा नदी में अलग-अलग वजहों से होने वाले प्रदूषण को रोकने के अलावा किया जा रहा उपाय है। अब यह उम्मीद की जा सकती है कि इसके जरिए मानव-सभ्यता के लिए एक बेहद जरूरी नदी में फिर से जीवन भर सकेगा।
हालांकि यह अपने आप में एक सवाल होना चाहिए गंगा नदी को स्वच्छ बनाने के लिए दशकों से लागू गंगा कार्ययोजना या नमामि गंगे जैसे महत्त्वाकांक्षी कार्यक्रम और अन्य नीतियों के बावजूद आज भी इतनी बड़ी तादाद में ठोस कचरा या अन्य तरह की गंदगी बहाने वाले नालों पर कैसे रोक नहीं लग सकी। गौरतलब है कि गंगा नदी पर अधिकार संपन्न कार्यबल यानी ईटीएफ की पिछले महीने हुई ग्यारहवीं बैठक में यह जानकारी भी सामने आई कि उत्तरकाशी में सुरंग के निर्माण के कारण इसके मलबे को गंगा नदी के किनारे डाल दिया गया।
इससे नदी के जल में ठोस कचरा का स्तर बढ़ गया। इससे जलमल शोधन संयंत्रों में गंदे पानी का शोधन करने में समस्याएं आ रही हैं। हैरानी की बात यह है कि करीब साढ़े तीन दशक से गंगा कार्ययोजना सहित अन्य तमाम कार्यक्रमों जैसे अभियानों के बीच क्या गंगा को प्रदूषित करने वाला यह कोई नया कारक खोजा गया है? अगर नहीं, तो इस समस्या को चिह्नित करने में इतना लंबा वक्त कैसे लग गया?
यह समझना मुश्किल नहीं है कि समस्या शायद योजनाओं या कार्यक्रमों नहीं होगी, उनके अमल में बरती गई लापरवाही या फिर गड़बड़ियों की वजह से किसी बड़ी और बेहद महत्त्वपूर्ण पहलकदमी का भी हासिल शून्य हो जा सकता है। सरकार की ओर से घोषणाएं करने में शायद ही कभी कमी की जाती है, मगर उन पर अमल को लेकर कहां चूक या लापरवाही बरती जा रही है, इस पर गौर करना कभी जरूरी नहीं समझा जाता।
लगभग तीन साल पहले यह खबर आई थी कि सरकार 2022 तक गंगा नदी में गंदे नालों के पानी को गिरने से पूरी तरह रोक देगी और इस मसले पर एक मिशन की तरह काम चल रहा है। लेकिन हकीकत यह है कि इसके एक साल बाद चौबीस सौ से ज्यादा नाले चिह्नित किए गए हैं, जिनकी गंदगी और कचरे से गंगा का जीवन धीरे-धीरे छीज रहा है।
यह स्थिति बताती है कि इस नदी के निर्मलीकरण के लिए चलाई जाने वाली योजनाओं की उपलब्धि वास्तव में कितनी है। नीतियों और योजनाओं के बरक्स उन पर अमल की यह तस्वीर राजनीतिक इच्छाशक्ति की कमी को भी दर्शाती है। अन्यथा क्या कारण है कि नदियों के प्रदूषण को दूर करने के क्रम में सबसे ज्यादा जोर गंगा को स्वच्छ बनाने पर ही दिया गया, मगर इसका हासिल आज भी संतोषजनक नहीं है!