इस क्रम में न सिर्फ सामाजिकता से जुड़ी जीवनशैली और विचार-प्रक्रिया में संवेदनशीलता का स्तर बढ़ा, बल्कि व्यवस्था के भीतर परिभाषित अपराधों की सजा के मामले में भी क्रूरता के तत्त्वों को कम करने की कोशिशें हुईं। एक समय अगर सजा का कोई खास तरीका ज्यादा बेहतर माना गया, तो उसके स्वरूप पर भी विचार हुआ और दुनिया भर में उसमें बदलाव की गुंजाइशें खोजी हुईं। भारत में भी अब मौत की सजा के तरीके को लेकर बहस चल रही है और उसी क्रम में सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका पर सुनवाई हो रही है। अब तक इस सजा के लिए फांसी पर लटकाने को बेहतर तरीका माना गया था और सरकार का भी यही पक्ष था।
लेकिन मार्च में शीर्ष अदालत ने सरकार को एक विशेषज्ञ समिति बना कर इस बारे में अध्ययन और जानकारी इकट्ठा करने के लिए कहा था। अब केंद्र की ओर से सुप्रीम कोर्ट को बताया गया है कि वह इसके लिए एक समिति गठित करने के बारे में सोच रहा है, ताकि कानून के मुताबिक मौत की सजा देने के लिए कोई कम दर्दनाक तरीका खोजा जा सके।
गौरतलब है कि यहां मौत की सजा देने के लिए फिलहाल फांसी पर लटकाने का प्रावधान है, जिसे मानवीयता के लिहाज से बेहद क्रूर तरीका माना जाता है। यों यहां किसी अपराध के ‘दुर्लभ से दुर्लभतम मामले’ में ही मौत की सजा घोषित की जाती है, लेकिन फैसले में यह कहा जाता है कि ‘जब तक मौत न हो जाए, तब तक कैदी को फांसी पर लटकाया जाए’।
इसके तहत फांसी के बाद भी सजा पाने वाले व्यक्ति को आधे घंटे तक लटकाए रखा जाता है। इसी प्रक्रिया को बहुत लंबी और अमानवीय बताते हुए याचिका में मांग की गई है कि अगर किसी दोषी को मृत्युदंड देना ही हो तो उसके लिए फांसी पर लटकाने के बजाय उसकी मृत्यु के लिए कोई अन्य तरीका अपनाया जाना चाहिए।
इसके विकल्प में जहर का इंजेक्शन देने, गोली मारने या फिर विद्युत के करंट वाली कुर्सी पर बिठाने का तरीका बताया गया है। यों पिछले करीब साढ़े चार दशक के दौरान दुनिया के नब्बे से ज्यादा देशों ने सभी तरह के अपराधों के लिए मृत्युदंड को समाप्त कर दिया है। हालांकि कुछ देशों में अभी भी इस सजा का प्रावधान है। इस मसले पर भारत भी अब तक फांसी की सजा का पक्ष लेता रहा है।
करीब चार महीने पहले संयुक्त राष्ट्र महासभा में जब एक सौ पच्चीस देशों ने मृत्युदंड पर रोक के पक्ष में मतदान किया था, तब भारत ने इसके खिलाफ वोट दिया था। इसी तरह, 2021 में भी मृत्युदंड पर रोक लगाने के लिए संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद में लाए गए एक मसविदा प्रस्ताव का भी भारत ने समर्थन नहीं किया था।
दरअसल, इस मसले पर दुनिया भर में लंबे समय से बहस होती रही है कि किसी अपराध के बदले क्या केवल मौत की सजा ही आखिरी विकल्प है। यह भी एक प्रश्न रहा है कि सजा का मकसद अगर सुधार या फिर दोषी को अपने अपराध के बारे में अहसास कराना है तो उसे मृत्युदंड देना क्या उस संभावना को खत्म कर देता है! जहां तक भारत का सवाल है, अगर यहां मौत की सजा देने के तरीके को लेकर बहस हो रही है तो इसे एक तरह से सभ्यता के मौजूदा स्वरूप में अपराध के दंड की व्यवस्था को ऐसा चेहरा देने की कोशिश कहा जा सकता है, जिसमें क्रूरता के तत्त्व को कम किया जा सके।