विदेशी मुद्रा भंडार में गिरावट अर्थव्यवस्था के लिए अच्छा संकेत नहीं माना जाता। पिछले दो महीने से एक भी सप्ताह ऐसा नहीं गुजरा, जब भारतीय विदेशी मुद्रा भंडार में कमी दर्ज न की गई हो। इसके समांतर डालर के मुकाबले भारतीय रुपए की कीमत भी लगातार गिर रही है। रुपया छियासी के पार पहुंच गया है। इसकी मुख्य वजह अमेरिकी फेडरल की नीतियों में बदलाव, डालर की मजबूती और भारतीय बाजार से विदेशी निवेशकों की भारी निकासी बताई जा रही है।
मुद्रा भंडार और भारतीय रुपए की कीमतों में आ रही गिरावट
विशेषज्ञ बताते हैं कि सरकार ने रुपए की गिरती कीमत को रोकने के लिए विदेशी मुद्रा भंडार से निकासी शुरू की थी। मगर वह कारगर उपाय साबित नहीं हो सका। अब दोनों में समांतर गिरावट दर्ज होने लगी है। यह विदेशी निवेश आकर्षित करने, कर्ज पर ब्याज के भुगतान, जरूरी आयात आदि के मद्देनजर गंभीर चिंता का विषय है। रुपए की कीमत गिरने से आयात महंगा हो जाता है, पर्यटन, विदेशी शिक्षा आदि पर खर्च बढ़ जाता है। विदेशी मुद्रा भंडार में छीजन बढ़ने से विदेशी कर्ज के ब्याज में भुगतान को लेकर चिंता गहराने लगती है।
धुंधली पड़ रही भारतीय अर्थव्यवस्था की बदलती तस्वीर
विदेशी मुद्रा भंडार में लगातार कमी इस बात का भी संकेत है कि अपेक्षित विदेशी निवेश नहीं आ पा रहा है। निवेशकों का भरोसा कमजोर हो रहा है, इसलिए वे सुरक्षित जगहों का रुख कर रहे हैं। ऐसा इसलिए भी हो रहा है कि भारतीय अर्थव्यवस्था में तेजी से बढ़ोतरी की जो तस्वीर पेश की जा रही थी, वह अब धुंधली पड़ने लगी है। प्रमुख औद्योगिक क्षेत्रों की विकास दर नीचे बनी हुई है। विनिर्माण और सेवा क्षेत्र संघर्ष करते नजर आ रहे हैं। निर्माण क्षेत्र भी कमजोर होता जा रहा है।
चालू वित्तवर्ष में सबसे कम विकास दर होने का अनुमान, सरकार के लिए चिंता का विषय
पिछले बारह-तेरह वर्षों से प्रति व्यक्ति आय में बढ़ोतरी नहीं हुई है। निर्यात लगातार हिचकोले खा रहा है और घरेलू बाजार में रौनक लौट नहीं पा रही। महंगाई पर काबू पाना कठिन बना हुआ है। इसके बावजूद, विचित्र है कि सरकारें मुफ्त की योजनाओं की घोषणा करने की होड़ में शामिल हैं। वे विदेशी कर्ज लेकर इन्हें चलाने का प्रयास कर रही हैं। यह असंतुलन खत्म हुए बिना विदेशी मुद्रा भंडार के भरने की उम्मीद नहीं की जा सकती।