भ्रष्टाचार पूरी दुनिया के सामने विकास और खुशहाली की राह में बहुत बड़ा रोड़ा है। इसलिए लगभग हर देश ने इस पर अंकुश लगाने का तंत्र विकसित कर रखा है। प्रशासन की जवाबदेही तय करने की कोशिशें की जाती हैं। मगर हमारे यहां इस मामले में ज्यादातर नाकामी ही नजर आती है। इसलिए लंबे समय से मांग की जाती रही कि लोकपाल और लोकायुक्त के गठन संबंधी कानून बनना चाहिए। करीब ग्यारह वर्ष पहले इसे लेकर बड़ा आंदोलन हुआ, जिसके दबाव में लोकपाल अधिनियम पारित हुआ। मगर लोकपाल की नियुक्ति का मामला करीब पांच वर्ष तक इस तर्क के आधार पर टलता रहा कि लोकसभा में कोई विपक्ष का नेता नहीं था। लोकपाल अध्यक्ष की नियुक्ति में विपक्ष के नेता का होना जरूरी है।

आखिरकार पांच वर्ष पहले लोकपाल का गठन हआ, मगर अभी तक वह पूरी तरह कार्य करने की स्थिति में नहीं आ सका है। अब लोकपाल के जांच प्रकोष्ठ का गठन किया गया है। इस प्रकोष्ठ में लोकपाल अध्यक्ष के अधीन एक जांच निदेशक होगा, जिसे तीन पुलिस अधीक्षक मदद करेंगे। प्रत्येक पुलिस अधीक्षक को जांच अधिकारी और अन्य कर्मचारियों की सहायता प्रदान की जाएगी। इस तरह उम्मीद बनी है कि अब लोकसेवकों की अनियमितताओं के खिलाफ कुछ कड़े कदम उठाए जा सकेंगे।

हालांकि भ्रष्टाचार निवारण कानून के तहत पहले से कई जांच एजंसियां काम करती हैं। हर महकमे के कर्मचारी पर वहां का सतर्कता विभाग नजर रखता और उसके खिलाफ शिकायतों का निपटारा करता है। केंद्रीय जांच ब्यूरो, प्रवर्तन निदेशालय, आयकर विभाग भी संबंधित मामलों में जांच करते ही हैं। मगर प्रशासनिक सुधार आयोग का मानना था कि लोकपाल और लोकायुक्त के गठन से लोकसेवकों के खिलाफ निष्पक्ष कार्रवाई हो सकेगी।

लोकपाल के दायरे में प्रधानमंत्री भी

दूसरी जांच एजंसियों पर चूंकि राजनीतिक प्रभाव अधिक देखा गया है, इसलिए उनसे भ्रष्टाचार के मामले में निष्पक्षता की उम्मीद धुंधली बनी रहेगी। पर शायद सरकारों को लोकपाल और लोकायुक्त के गठन से इसीलिए हिचक पैदा होती रही कि उसके दायरे में प्रधानमंत्री तक को रखा गया है। फिर, लोकपाल और लोकायुक्त स्वतंत्र निकाय की तरह काम करेंगे, उन्हें दूसरी एजंसियों की तरह किसी अधिकारी के खिलाफ जांच करने के लिए संबंधित विभाग से अनुमति की जरूरत नहीं होगी। कई सरकारों को लगता रहा है कि इस तरह उनके कामकाज में बाधा पड़ सकती है। शायद यही कारण है कि अब भी कई राज्य सरकारों ने अपने यहां लोकायुक्त का गठन नहीं किया है।

देर से ही सही, लोकपाल के जांच प्रकोष्ठ के गठन से लोगों में भ्रष्टाचार निवारण की दिशा में उल्लेखनीय नतीजों की उम्मीद जगी है। लोकसेवकों में गलत तरीके से पैसा कमाने की भूख और रिश्वत लेकर अपात्र लोगों को लाभ पहुंचाने, सरकारी योजनाओं में गतिरोध और छीजन पैदा करने की प्रवृत्ति किसी से छिपी नहीं है। इस वातावरण को तभी ठीक किया जा सकता है, जब लोकसेवकों की अनियमितताओं पर लगाम लगाई जा सके।

लोकपाल की नियुक्ति में राजनीतिक दखल

हालांकि कुछ लोग यह संशय व्यक्त करते रहे हैं कि लोकपाल और लोकायुक्त की नियुक्ति में भी राजनीतिक दखल होती है, इसलिए वे कितने निष्पक्ष रह पाएंगे, कहना मुश्किल है। मगर एक विशाल जनसमुदाय और बड़े प्रतिबद्ध प्रबुद्ध समाज की इच्छा से गठित इस संस्था से भ्रष्टाचार निवारण को लेकर निष्ठा और निष्पक्षता की उम्मीद फिलहाल कमजोर नहीं हुई है।