राजधानी दिल्ली के गुरु तेग बहादुर (जीटीबी) अस्पताल में भर्ती एक मरीज की सरेआम गोली मारकर हत्या कर देने की घटना से एक बार फिर कई सवाल खड़े हुए हैं। अस्पताल में बीमार और घायल लोग इलाज पाकर नए जीवन की उम्मीद करते हैं। मगर अस्पताल ही जब सुरक्षित न हों तो पुलिस और प्रशासनिक व्यवस्था का सवालों के कठघरे में आना स्वाभाविक है। इस घटना के बाद अस्पतालों में कार्यरत चिकित्सक भी अपनी सुरक्षा को लेकर चिंतित हैं।
यही वजह है कि जीटीबी अस्पताल के रेजीडेंट डाक्टरों ने इसे लेकर अनिश्चितकालीन हड़ताल शुरू कर दी है। उनका कहना है कि अस्पतालों में सुरक्षा बढ़ाने को लेकर उनकी मांगों को नजरअंदाज किया जा रहा है। जब तक सरकार अस्पताल के भीतर सभी के लिए सुरक्षित माहौल नहीं बनाती, वे सेवाएं नहीं दे सकते। गौरतलब है कि दिल्ली के जीटीबी अस्पताल में रविवार को एक युवक ने वार्ड में घुसकर वहां भर्ती एक मरीज की गोली मार कर हत्या कर दी। उस वक्त वार्ड में अन्य मरीज और अस्पताल के कर्मी भी मौजूद थे, लेकिन हमलावर ने हथियार दिखाकर सभी को चुप करा दिया। जाहिर है, हमलावर के भीतर पुलिस और कानून का कोई खौफ नहीं था।
सवाल है कि हमलावर हथियार लेकर अस्पताल के भीतर कैसे दाखिल हो गया। क्या वहां सुरक्षा जांच की कोई व्यवस्था नहीं थी? या फिर सुरक्षा में कोई चूक हुई है? लापरवाही का अंदाजा इससे लगाया जा सकता है कि हमलावर वारदात को अंजाम देने के बाद आसानी निकल भागा। यह सब जांच का विषय है और इसके लिए जिम्मेदार लोगों को भी कठघरे में खड़ा किया जाना चाहिए। इस घटना के बाद दिल्ली सरकार का कहना है कि यहां के सभी अस्पतालों की सुरक्षा व्यवस्था की समीक्षा की जाएगी और किसी भी तरह की लापरवाही बर्दाश्त नहीं की जाएगी। अस्पतालों में सुरक्षा व्यवस्था चाक-चौबंद होनी ही चाहिए, लेकिन आखिर ऐसा क्यों होता है कि शासन-प्रशासन कोई बड़ी घटना होने के बाद ही सक्रिय होता है? जब तक तमाम व्यवस्थाओं को दुरुस्त करने के लिए ठोस नीति तैयार कर उस पर सख्ती से अमल सुनिश्चित नहीं किया जाता, तब तक इस तरह की घटनाओं पर अंकुश लगाना मुश्किल होगा।