अमेरिकी राष्ट्रपति ने भारत सहित दुनिया के कई देशों को शुल्क युद्ध में घसीट लिया है। उन्होंने जवाबी शुल्क की घोषणा कर एक तरह से टकराव की स्थिति पैदा कर दी है। अमेरिका की ओर से भारी शुल्क थोपे जाने से स्वाभाविक रूप से अब विश्व में व्यापारिक परिदृश्य बदलेगा और इससे व्यापार युद्ध की आशंका सच साबित हो सकती है। अगर भारत पर इसका प्रभाव पड़ा, तो अमेरिका भी दूसरे देशों के जवाबी शुल्क से नहीं बच सकेगा।

दरअसल, राष्ट्रपति बनने के बाद डोनाल्ड ट्रंप भारत में अमेरिका के सामान पर लगने वाले अधिक शुल्क का सवाल बार-बार उठाते रहे हैं। उन्होंने इसे विवाद का मुद्दा भी बनाया। मगर अब अमेरिका ने भारत पर छब्बीस फीसद शुल्क लगा कर साफ कर दिया है कि वह इस विवाद को शायद आगे ले जाना चाहता है। स्पष्ट है कि अब दोनों देशों के परस्पर निर्यात पर दूरगामी असर पड़ेगा।

भारत के साथ अमेरिका के रिश्ते पर पड़ेगा गंभीर प्रभाव

वहीं भारत के साथ अमेरिका के व्यापार संबंधों पर गंभीर प्रभाव पड़ना भी तय लग रहा है। ऐसे में भारत यूरोपीय, अफ्रीकी और एशियाई देशों से व्यापार के विकल्प पर विचार कर सकता है। गौरतलब है कि पिछले वर्ष भारत ने अमेरिका को 78 अरब डालर का निर्यात किया था जो कुल निर्यात का अठारह फीसद ही है।

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फिलहाल सबसे बड़ी चिंता लघु और मझोले उद्यमों के निर्यात पर पड़ने वाले प्रभाव की है। कृषि उत्पादों, औषधियों और मशीनरी पर असर पड़ने की आशंका जताई जा चुकी है। निवेशकों के छिटकने और निर्यात में गिरावट के बावजूद भारत इस झटके को सहने का सामर्थ्य रखता है, क्योंकि वह सिर्फ अमेरिकी बाजार पर ही निर्भर नहीं। भारत अब अन्य निर्यात बाजारों पर भी ध्यान केंद्रित करेगा।

ट्रंप की टैरिफ नीति का अमेरिका और भारत दोनों देशों को निकालना होगा बीच का कोई रास्ता

अगर अमेरिका को अपनी कंपनियों के हितों की चिंता है, तो भारत के लिए भी यह स्वाभाविक है। ऐसे में जरूरी है कि दोनों देश बीच का कोई रास्ता निकालें। ऐसा न होने पर दोनों ओर से निर्यात घटेगा और शुल्क में बढ़ोतरी की वजह से अमेरिकी बाजार में कई चीजें महंगी हो जाएंगीं। ट्रंप विश्व व्यापार में एक नई व्यवस्था कायम करने की ओर बढ़ रहे हैं, लेकिन उन्हें समझना चाहिए कि इससे वे अमेरिका की आर्थिक बुनियाद को कमजोर ही करेंगे। भारत से व्यापार संबंध बिगाड़ कर उन्हें कुछ हासिल नहीं होगा।