ईरान के परमाणु ठिकाने वाले शहर इस्फहान पर इजराइल के हमले की खबर के बाद लगने लगा है कि युद्ध को टालने की कोशिशें अब नाकाम साबित हो रही हैं। स्थिति और नाजुक हो रही है। अमेरिका और ब्रिटेन ने ईरान पर नए प्रतिबंधों की घोषणा कर दी है। जाहिर है, ईरान के सामने अगर मुश्किलें पेश आएंगी तो उसकी प्रतिक्रिया भी शायद संतुलित न रहे।

गौरतलब है कि इस महीने की शुरुआत में सीरिया में ईरान के दूतावास को इजराइल ने ड्रोन हमले से ध्वस्त कर दिया था। उसमें ईरान के रिवोल्यूशनरी गार्ड्स के दो जनरल समेत कुछ अन्य लोग मारे गए थे। उसके जवाब में ईरान ने इजराइल पर ड्रोन और मिसाइल से हमला किया। इसके बाद से ही इजराइल के जवाबी कार्रवाई की आशंका बनी हुई थी।

अब इस्फहान पर इजराइली ड्रोन हमले की खबर से साफ है कि हालात नाजुक हो सकते हैं। हालांकि ईरान ने ऐसे किसी हमले से इनकार किया है। उसने कहा है कि वह सिर्फ ड्रोन उड़ाने की कोशिश थी, जिसे मार गिराया गया। अगर इतना भी हुआ है, तो इससे टकराव और तनाव गहरा ही होगा। यह रास्ता कहां जाता है, छिपा नहीं है।

विडंबना है कि इसमें शामिल सभी सक्रिय पक्षों को पता है कि किसी भी समस्या या विवाद का आखिरी हल बातचीत के जरिए ही निकाला जा सकता है। इसके बावजूद पहले सैन्य क्षमताओं की आजमाइश और टकराव को ही अकेला रास्ता माना जा रहा है। सवाल है कि अगर इजराइल और ईरान एक-दूसरे के ठिकानों पर हमला करते हैं, तो इससे नुकसान किसका होगा और कौन लोग नाहक मारे जाएंगे!

इस टकराव के शुरुआती चरण में ही जिस तरह अलग-अलग ध्रुव बनते दिखने लगे हैं, उससे साफ है कि अगर इसका दायरा फैला तो यह तीसरे विश्वयुद्ध की शक्ल भी ले सकता है। अब तक के दो विश्वयुद्धों के जो अनुभव रहे हैं, उसमें तत्काल इस बात की जरूरत है कि संयुक्त राष्ट्र और महाशक्ति माने जाने वाले देश दखल देकर संबंधित पक्षों को बातचीत की मेज पर लाएं। युद्ध की आग और भड़की तो अत्याधुनिक तकनीकों और घातक हथियारों के इस युग में इसके नतीजे भयावह होंगे।