किसानों की समस्याओं और उनकी मांगों पर पारदर्शी ढंग से बातचीत और समाधान न हो पाने का ही नतीजा है कि वे बार-बार आंदोलन की राह पर चल पड़ते हैं। गौतम बुद्ध नगर और उसके आसपास के जिलों के किसान इसीलिए एक बार फिर दिल्ली की तरफ कूच कर गए और सोमवार को दिन भर लोगों को यातायात में बाधा से जूझना पड़ा। दिल्ली-नोएडा सीमा पर भारी पुलिस बल तैनात होने और अवरोधक लगाए जाने के बावजूद किसान नहीं रुके। हालांकि शाम होते-होते उन्होंने अपना फैसला बदल लिया और कहा कि सरकार से बातचीत में अगर संतोषजनक नतीजे नहीं निकलते हैं, तो वे दिल्ली की तरफ फिर से कूच करेंगे।

मुआवजे में बढ़ोतरी और भुगतान की मांग

ये किसान कई वर्ष से अव्यावहारिक ढंग से निर्धारित किए गए मुआवजे में बढ़ोतरी और भुगतान की मांग कर रहे हैं। इससे पहले भी कई बार वे दिल्ली की तरफ बढ़ने का प्रयास कर चुके हैं। उत्तर प्रदेश सरकार पर दबाव बनाने की कोशिश करते रहे हैं, मगर उनकी मांगों पर ठीक से विचार नहीं किया गया। दरअसल, अलग-अलग सरकारों के समय अलग-अलग मुआवजा नीति के तहत नोएडा के किसानों से ली गई जमीन का भुगतान किया गया। उनमें बहुत सारे किसानों को उचित मुआवजा नहीं मिल पाया, जिसे लेकर वे आंदोलन करते रहे हैं।

भ्रष्टाचार के कारण किसानों तक नहीं पहुंच पाती वाजिब रकम

विकास परियोजनाओं के लिए ली गई जमीन के मुआवजा भुगतान में अपारदर्शिता की शिकायतें अक्सर मिलती रही हैं। उनके निपटारे पर गंभीरता नहीं दिखाई जाती, जिसके चलते हजारों किसान लंबे समय से परेशानियों का सामना कर रहे हैं। यों तो सरकारें किसानों की आय बढ़ाने, आपदा के समय उनकी फसल का उचित मुआवजा दिलाने, फसल बीमा, किसान कर्ज में सहूलियत, भूमिहीन किसानों के लिए रोजगार, जमीन के मुआवजे का उचित भुगतान आदि के दावे बढ़-चढ़ कर करती हैं, मगर हकीकत यही है कि भ्रष्टाचार के कारण किसानों तक वाजिब रकम नहीं पहुंच पाती।

पढ़ें दिनभर की सभी बड़ी खबरें-

गौतमबुद्ध नगर के किसान पिछले दस वर्षों में अधिग्रहीत भूमि का बाजार मूल्य से चार गुना अधिक भुगतान करने, उससे पहले यानी पुरानी अधिग्रहण नीति के तहत ली गई जमीन का बढ़ी हुई कीमत पर भुगतान करने, इन मांगों के संबंध में गठित उच्चाधिकार प्राप्त समिति की सिफारिशों को लागू करने आदि की मांग कर रहे हैं। ये ऐसे मुद्दे नहीं हैं, जिन पर किसानों के साथ तार्किक ढंग से बात न की जा सके। इस मामले में प्रशासनिक शिथिलता के कारण किसान धुंधलके में बने हुए हैं।

संपादकीय: BMW कार और AC रखने वालों को नहीं आती शर्म, गरीब तबके का मार रहे हक

दरअसल, किसानों की समस्याओं पर कोई भी सरकार संवेदनशील नजर नहीं आती। न्यूनतम समर्थन मूल्य की कानूनी गारंटी का मुद्दा पुराना है। इसे लेकर किसान लंबे समय तक धरने पर बैठे रहे। प्रधानमंत्री ने उन्हें आश्वासन दिया कि इस मामले में शीघ्र निर्णय किया जाएगा और किसानों ने धरना वापस ले लिया था। मगर अब तक उस दिशा में कोई कदम आगे नहीं बढ़ाया जा सका है। इस वजह से कई बार पंजाब और हरियाणा के किसान दिल्ली कूच को निकल चुके हैं, जिन्हें रोकने के लिए पुलिस को शक्ति प्रदर्शन करना पड़ा।

अपनी समस्याओं को लेकर मांग उठाना किसानों का संवैधानिक अधिकार है। मगर सरकारों से अपेक्षा की जाती है कि वे उनकी मांगों पर संजीदगी दिखाएं। दोनों के बीच जब-तब जोर आजमाइश की कोशिशों से आखिरकार आम लोगों को नाहक परेशानियों का सामना करना पड़ता है। किसानों की समस्याओं के निपटारे के लिए कोई पारदर्शी और व्यावहारिक तंत्र क्यों नहीं बनना चाहिए?