एक तरफ देश की आर्थिक वृद्धि दर के ताजा आंकड़े, तो दूसरी ओर शेयर बाजार में भारी उथल-पुथल से अर्थव्यवस्था के मोर्चे पर चिंता की लहरें साफ देखी जा सकती हैं। हालांकि वृद्धि दर को लेकर आर्थिक विशेषज्ञों की ओर से जो अनुमान जाहिर किए गए थे, उसमें ज्यादा फासला नहीं है, फिर भी इसकी निम्न दर ने अर्थव्यवस्था के मामले में सरकार के अक्सर किए जाने वाले दावों को आईना दिखाया है। राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय यानी एनएसओ की ओर से जारी आंकड़ों के मुताबिक, चालू वित्त वर्ष की अक्तूबर-दिसंबर तिमाही में देश की आर्थिक वृद्धि दर घट कर 6.2 फीसद रह गई।
चिंता का मुद्दा यह भी है कि कृषि को छोड़ कर खनन, विनिर्माण और अन्य सभी क्षेत्रों में प्रदर्शन खराब रहा। दरअसल, इसी वजह से आर्थिक वृद्धि दर में भी सुस्ती आई है। यों इस बात पर राहत महसूस की जा रही है कि चूंकि पिछली तिमाही यानी जुलाई-सितंबर, 2024 में वृद्धि दर 5.6 फीसद रही थी, इसलिए उसके बाद वाली तिमाही के आंकड़े भारतीय अर्थव्यवस्था के रफ्तार पकड़ने के सूचक हैं। मगर सुधार का आकलन समूचे वित्त वर्ष के आंकड़े के आधार पर ही किया जा सकता है।
एक वर्ष पहले 4.7 फीसद से घट कर 1.4 फीसद रह गई तीसरी तिमाही में वृद्धि दर
गौरतलब है कि वर्ष 2023 में अक्तूबर-दिसंबर की तिमाही में सकल घरेलू उत्पाद यानी जीडीपी की वृद्धि दर 9.5 फीसद बताई गई थी। यानी पिछले वर्ष की समान तिमाही में एक साल के भीतर इतना बड़ा फासला यह बताने के लिए काफी है कि देश की अर्थव्यवस्था की दशा और दिशा में सुधार के लिए अभी बहुत ठोस कदम उठाए जाने की जरूरत है। एनएसओ के ताजा आंकड़े आने से पहले चालू वित्त वर्ष के लिए वृद्धि दर का दूसरा अनुमान जारी करते हुए इसके 6.5 फीसद रहने का अनुमान जताया गया था।
हिंदी का जबरदस्ती विरोध कर रहे स्टालिन, 1937 में शुरू हुई थी भाषा की लड़ाई
इस लिहाज से देखें तो वृद्धि दर कमोबेश आसपास रही। मगर इसके समांतर खनन और उत्पादन के क्षेत्र में वृद्धि दर तीसरी तिमाही में एक वर्ष पहले के 4.7 फीसद से घट कर 1.4 फीसद रह गई। इसके अलावा, निर्माण क्षेत्र, सेवा क्षेत्र, व्यापार, होटल, परिवहन, वित्तीय, जमीन-जायदाद कारोबार, पेशेवर सेवाएं, संचार और प्रसारण से संबंधित सेवाओं में भी वृद्धि दर में गिरावट दर्ज की गई। यों इस तिमाही में कृषि क्षेत्र में उत्पादन 5.6 फीसद बढ़ने को राहत के तौर पर देखा जा सकता है।
आर्थिक अनिश्चितता के दौर से गुजर रही है दुनिया
अफसोस की बात यह है कि अर्थव्यवस्था के मोर्चे पर कई तरह की जटिलताओं के अनुमान पहले से मौजूद रहने के बावजूद सरकार उससे पार पाने के वैकल्पिक इंतजामों पर गौर करने की पर्याप्त कोशिश नहीं करती है। अगर अक्तूबर-दिसंबर के त्योहारी मौसम में भी वृद्धि दर संतोषजनक नहीं रहे तो इससे यही पता चलता है कि आर्थिक विकास के संदर्भ में सरकार के दावे चाहे जो रहे हों, मगर जमीनी स्तर पर चिंता को कम करने की कोशिशें आधी-अधूरी हैं।
विद्यार्थियों का घटता नामांकन चिंता का विषय, स्कूल छोड़ने के पीछे लैंगिक असमानता एक बड़ी वजह
दूसरी ओर, वस्तुओं पर शुल्क लगाए जाने के मसले पर अमेरिका की नई नीतियों की घोषणा के बाद व्यापार युद्ध की आशंका के बीच दुनिया भर के शेयर बाजारों में भारी गिरावट देखी गई। इसके दबाव में भारत के घरेलू शेयर बाजार का मानक सूचकांक 1414 और निफ्टी 420 अंक टूट गया। इस तेज गिरावट से निवेशकों को नौ लाख करोड़ रुपए का नुकसान उठाना पड़ा। स्वाभाविक ही आर्थिक वृद्धि दर के ताजा आंकड़े को शेयर बाजार में गिरावट से जोड़ कर देखा जा रहा है। दुनिया फिलहाल जिस आर्थिक अनिश्चितता के दौर से गुजर रही है, उसमें भारत को अपनी अर्थव्यवस्था को संभालने के लिए पूर्व तैयारी करने की जरूरत है।