किसी भी हादसे के बाद उसके कारणों की जांच एक अनिवार्य प्रक्रिया है, जिसमें तथ्यों के आधार पर जिम्मेदारी तय की जाती है। मगर कई मामलों में असली दोषी पकड़ में नहीं आते या जांच की रपट किसी ठोस निष्कर्ष पर नहीं पहुंच पाती है। जाहिर है, इसके लिए किसी न किसी स्तर पर सबूतों को नष्ट करने, तथ्यों को दबाने, छिपाने या उनमें छेड़छाड़ की कोशिश की गई होती है। कुछ समय पहले गुजरात के राजकोट में एक खेल-परिसर में लगी आग में जैसी त्रासदी सामने आई, उसकी जांच के दौरान जो तथ्य सामने आ रहे हैं, उससे साफ है कि वहां बहुस्तरीय लापरवाही बरती गई और बाद में उस पर पर्दा डालने की कोशिशें भी हुईं।

सबूत नष्ट करने के लिए बैकडेट में की एंट्री

पुलिस ने इस सिलसिले में अब तक राजकोट नगर निगम के छह कर्मचारियों को गिरफ्तार किया है, जिन्होंने खेल-परिसर की पहले से तैयार की गई एक योजना को मंजूरी दी। फिर आग लगने के एक दिन बाद पिछली तारीख में प्रविष्टियां दर्ज कर सबूत नष्ट किए गए।

इस संदर्भ में अगर ऐसे तथ्यों पर गौर किया जाए तो यही सामने आता है कि कई मामलों में पहले सारे नियम-कायदे ताक पर रख कर किसी गतिविधि को संचालित करने की इजाजत दे दी जाती है या फिर उस ओर से आंखें मूंद ली जाती हैं। फिर अगर किन्हीं हालात में कोई हादसा हो जाता और मामला तूल पकड़ता है तो असली दोषियों को बचाने की कोशिश शुरू हो जाती है। अगर कभी जांच में ये मामले पकड़े जाते हैं, तभी दोषियों के खिलाफ जालसाजी, साक्ष्य नष्ट करने और आपराधिक षड्यंत्र से संबंधित धाराओं के तहत कार्रवाई की जाती है।

मगर कई बार जालसाजी करके बड़े हादसों के लिए जिम्मेदार आपराधिक लापरवाहियों पर भी पर्दा डाल दिया जाता है। कुछ समय पहले पुणे में एक कार से टक्कर मार कर दो लोगों की जान लेने वाले एक नाबालिग को बचाने की कोशिश में किस स्तर पर सबूतों में हेराफेरी गई, वह अब सबके सामने है। दोषियों को बचाने के लिए तंत्र के स्तर पर इस तरह की हेराफेरी करने वालों पर लगाम लगाए बिना न्याय सुनिश्चित करना मुश्किल होगा