हर साल कई झुग्गी-झोपड़ियां जल कर खाक हो जाती और हजारों हजार लोग बेघर हो जाते हैं। अनियोजित तरीके से बनी अनधिकृत कालोनियों में आग पर काबू पाना हमेशा चुनौती होता है। कई कारखाने जल कर नष्ट हो जाते हैं। उनमें काम करने वाले लोग नाहक जान गंवा बैठते हैं।
हर साल जब आग लगने की घटनाएं होती हैं, तो सुरक्षा मानकों पर गंभीरता से ध्यान देने का संकल्प दोहराया जाता है। मगर हैरानी की बात है कि बाकायदा नियम-कायदों को ध्यान में रखते हुए बनाए गए सरकारी भवनों, बहुमंजिला इमारतों में भी आग लगने की घटनाओं को रोक पाना चुनौती साबित होता है।
ऐसे भवनों में अक्सर आग की बड़ी वजह बिजली के तारों के परस्पर जुड़ जाने से पैदा हुई चिनगारी को माना जाता है। सोमवार को दो बड़ी आग की घटनाओं ने एक बार फिर इस चिंता को रेखांकित किया कि आखिर कब आग लगने की घटनाओं पर पूरी तरह काबू पाने का तंत्र विकसित किया जा सकेगा। गाजियाबाद की एक इमारत में आग लगने से दो महिलाओं की मौत हो गई। दूसरी घटना भोपाल के सतपुड़ा भवन में घटी, जिसमें राज्य सरकार के कई कार्यालय हैं। वहां लगी आग पर काबू पाने के लिए दमकल, सेना और हेलिकाप्टरों की मदद लेनी पड़ी।
भारत में गर्मी का मौसम लंबा होता है और जिस तरह यहां सघन बसावट है, गांवों से पलायन कर शहरों में आए लोग सिर छिपाने के लिए कहीं फूस, प्लास्टिक, लोहे की चादरों से ठिकाना बना लेते हैं, उसमें आग लगने के खतरे हमेशा बने रहते हैं। मगर उनकी तरफ प्रशासन इसलिए गंभीरता से ध्यान नहीं दे पाता कि उसकी मानसिकता गरीबों के प्रति उपेक्षा की होती है।
मगर सवाल है कि दिल्ली, मुंबई, बंगलुरु, कोलकाता जैसे महानगरों में जिस तरह लोगों ने अवैध तरीके से बस्तियां बसा रखी हैं या फिर जिन बस्तियों को सरकार ने मंजूरी दे रखी है, उनमें भी आग की भयावह घटनाएं होती रहती हैं। उन बस्तियों में दमकल की गाड़ियों के पहुंचने तक की गुंजाइश नहीं होती। जैसे-तैसे वे जब तक पहुंचती हैं, तब तक काफी नुकसान हो चुका होता है।
गाजियाबाद की जिस इमारत में आग लगी, उसमें तंबू-कनात और सजावटी सामान का गोदाम था। ऊपर के तले पर परिवार रहता था। इस तरह जहां भी रिहाइशी भवनों का व्यावसायिक इस्तेमाल होता है, वहां ऐसे खतरे बने रहते हैं। मगर हर साल इतनी घटनाएं हो जाने के बाद भी नगर निगमों की आंखें नहीं खुलतीं।
नियम के मुताबिक बहुमंजिला इमारतों और सार्वजनिक भवनों, विशाल व्यावसायिक स्थानों में अग्निशमन का पुख्ता इंतजाम जरूरी है। इस नियम के पालन में अगर कहीं कोताही देखी जाती है तो उस इमारत का पंजीकरण रद्द किया जा सकता है, उस पर ताला लटकाया जा सकता है। मगर इसे क्या कहें कि भोपाल के सरकारी भवन में ही आग की ऐसी भीषण घटना हो गई कि उस पर काबू पाने के लिए नाकों चने चबाने पड़े।
जाहिर है, अगर उसमें अग्निशमन के संयंत्र लगे होते तो आग इतना विकराल रूप न लेने पाती। मगर यह बात भी किसी से छिपी नहीं है कि जिन इमारतों में अग्निशमन यंत्र लगे भी हैं, उनका नियमित रखरखाव नहीं होता और उन पर नजर रखने वाला महकमा अपनी आंखें मूंदे रहता है। आखिर लोगों की जान की कीमत पर ऐसी घटनाएं कब तक होती रहेंगी।