उज्जैन में नाबालिग बच्ची से बलात्कार और खून से लथपथ हालत में उसके सड़कों पर भटकने की झकझोर देने वाली घटना ने निर्भया मामले की याद ताजा कर दी। ऐसा लगता है कि महिलाओं की सुरक्षा और सम्मान के लिहाज से आज भी कुछ नहीं बदला है। बारह साल की बच्ची के साथ बलात्कार कर उसे अर्धनग्न अवस्था में सड़क पर छोड़ दिया गया।
वह अपने तन को ढंकने की कोशिश करती हुई मदद के लिए रात के अंधेरे में आठ किलोमीटर तक उज्जैन के गली-मोहल्लों में भटकती रही। आखिरकार खून ज्यादा बह जाने के कारण बेहोश होकर गिर गई। उसके आंतरिक अंगों को गहरी चोट पहुंचाई गई थी। डाक्टरों ने इलाज कर उसे बचा तो लिया है, लेकिन अभी उसकी हालत स्थिर है।
यह घटना उस मासूम के साथ हुई है, जो उस शहर की भाषा भी नहीं समझती, अपना दर्द किसी से साझा नहीं कर सकती। पीड़ित बच्ची दूसरे राज्य की बताई जा रही है। वह यहां कैसे पहुंची, यह भी जांच का विषय है। कहीं मामला बाल तस्करी या बच्चा चोरी से जुड़ा तो नहीं है। सरकार ने इसके लिए विशेष जांच दल बना दिया है।
घटना सोमवार तड़के तीन से पांच बजे के बीच की है। दो तिपहिया वाहनों में उसके साथ ज्यादती होने के सबूत मिले हैं। पुलिस ने तीन तिपहिया चालकों को हिरासत में लिया है। उम्मीद है कि आगे की कार्रवाई होगी और दोषी कानून के शिकंजे में कसे जा सकेंगे। मगर क्या उन सवालों के जवाब मिल पाएंगे, जो निर्भया कांड के समय उभरे थे और फिर बड़े-बड़े वादों की चादर में ढक दिए गए थे।
उस समय ऐसा लग रहा था कि समाज के मुंह पर कालिख पोतने वाली यह आखिरी घटना होगी, लेकिन उसके बाद दिल्ली, कठुआ, पटना समेत कई जगहों पर बच्चियों के साथ सिहरा देने वाली घटनाएं हुर्इं। सिलसिला बदस्तूर जारी है। समाज में यह प्रवृत्ति बढ़ती जा रही है। आंकड़े डराने वाले हैं। राष्ट्रीय अपराध रिकार्ड ब्यूरो की रपट के मुताबिक कई कड़े कानून बनने के बावजूद पिछले दस वर्षों में महिलाओं के साथ अपराधों में सतासी फीसद की वृद्धि हुई है।
निर्भया कांड के बाद दुष्कर्म की घटनाएं रोकने के लिए पाक्सो कानून बना। नाबालिगों के संरक्षण का यह सबसे बड़ा हथियार है। भारतीय दंड संहिता की धारा 181 और 182 में बदलाव हुआ और किशोर न्याय विधेयक पास किया गया। इसके तहत सोलह साल या उससे अधिक उम्र के किशोर को जघन्य अपराध करने पर वयस्क मानकर मुकदमा चलेगा।
बलात्कार से जुड़े नियम कड़े किए गए और दुष्कर्म के दोषी के लिए फांसी की सजा जोड़ी गई। महिलाओं, विशेषकर बच्चियों के साथ बढ़ते अपराध से ऐसा लगता है कि ये सारे इंतजाम तब तक नाकाफी और बेमानी हैं, जब तक समाज में महिलाओं के प्रति सम्मान की भावना जागृत नहीं होगी, लोगों में कानून का खौफ पैदा नहीं होगा तथा समाज में नैतिकता और जिम्मेदारी का पक्ष मजबूत नहीं होगा।
सरकार को इस तरफ गंभीरता से विचार करना होगा कि महिलाओं के खिलाफ यौन हिंसा के मामले में भारत अब भी विश्व के सबसे खतरनाक देशों की सूची में क्यों है। यहां हर बीस मिनट में एक महिला बलात्कार की शिकार क्यों हो रही है। हैरानी की बात है कि इतनी देर तक पीड़ित बच्ची गली-मुहल्लों की सड़कों पर घूमती रही और उसकी मदद के लिए पुलिस कैसे नहीं आई। जब तक पुलिस नींद से नहीं जागेगी, अपराधी इसी तरह बच्चियों के साथ बेखौफ बर्बरता करते रहेंगे।