जिसके पास ये दोनों चीजें हैं, वह बहुत आसानी से किसी राजनीतिक दल का चुनावी टिकट हासिल कर लेता है। फिर यह किसी से छिपी बात नहीं है कि चुनाव जीतने के बाद किस तरह ऐसे लोगों की कमाई बहुत तेजी से बढ़नी शुरू होती है। इसी चक्र को तोड़ने का संकल्प लेकर आम आदमी पार्टी का गठन हुआ था।

एक वैकल्पिक राजनीति की धारा विकसित करना और भ्रष्टाचार मुक्त व्यवस्था बनाना उसका सबसे प्रमुख नारा था। मगर यह देख कर हैरानी होती है कि वही पार्टी अब खुद उसी कीचड़ में लिथड़ने लगी है, जिसमें दूसरे राजनीतिक दल लिथड़ते आ रहे हैं। दिल्ली नगर निगम चुनाव में टिकट दिलाने के लिए एक विधायक के साले का नब्बे लाख रुपए की रिश्वत मांगना इसका ताजा उदाहरण है।

भ्रष्टाचार निरोधक शाखा यानी एसीबी ने उस व्यक्ति को रंगे हाथों गिरफ्तार भी कर लिया है। हालांकि ऐसे आरोपों पर हमेशा आम आदमी पार्टी मुखर रही है कि उसकी विरोधी भाजपा उसे बदनाम करने की नीयत से ऐसे कुचक्र रचती रही है। मगर जिस व्यक्ति से रिश्वत मांगी गई थी, वह कई साल से आम आदमी पार्टी का कार्यकर्ता रहा है और जब खुद उसी ने एसीबी के पास जाकर शिकायत दर्ज कराई तो फिर इसमें किसी कुचक्र का सवाल ही कहां उठता है।

इसी तरह गुजरात में आम आदमी के एक प्रत्याशी के अचानक लापता हो जाने पर पार्टी ने खूब शोर मचाया कि उसे भाजपा के लोगों ने अपहृत कर लिया है और उस पर नामांकन वापस लेने का दबाव बना रहे हैं। मगर वह प्रत्याशी फिर अचानक प्रकट हुआ और उसने न सिर्फ अपना पर्चा वापस ले लिया, बल्कि सार्वजनिक रूप से बयान दिया कि उसने अपनी अंतरात्मा की आवाज पर ऐसा किया।

उसे लग रहा था कि आम आदमी पार्टी राष्ट्र विरोधी और गुजरात विरोधी है। इन दोनों घटनाओं ने आम आदमी पार्टी के सिद्धांतों को गहरे प्रश्नांकित किया है। हालांकि दिल्ली नगर निगम चुनाव में जिस व्यक्ति से टिकट के लिए रिश्वत मांगी गई थी, उसे पार्टी ने टिकट नहीं दिया। इससे वह अपने को बेदाग कह सकती है। मगर यह सवाल तो बना रहेगा कि कैसे उसके एक विधायक का नजदीकी रिश्तेदार ऐसी गतिविधियों में संलिप्त था और किस भरोसे पर उसने टिकट दिलाने का वादा किया था। क्या उस विधायक को उसकी गतिविधियों के बारे में जानकारी नहीं थी, या क्या इस तरह के काम वह पहले से करता आ रहा था।

चुनावों में पैसे का लेनदेन कोई नई बात नहीं है। हर पार्टी अब जिस तरह बेपनाह पैसा बहाने लगी है, उसमें उगाही के अनेक तरीके अपनाए जाने लगे हैं। अच्छे जनाधार वाले सामान्य कार्यकर्ताओं के बजाय धनबल और बाहुबल वाले प्रत्याशियों को टिकट देने का चलन इसीलिए अधिक है कि वे न सिर्फ अपने चुनाव का खर्च उठा सकेंगे, बल्कि पार्टी के कोष में भी पैसा डाल सकेंगे।

इस तरह छिपे तौर पर ही सही, मगर पैसा लेकर टिकट देने की बातें आम जन तक में होती रहती हैं। मगर आम आदमी पार्टी ने भी वही तरीका अपना लिया है, यह उसकी नैतिकता पर सवाल खड़े करने वाली बात है। हालांकि चुनाव के वक्त हर राजनीतिक दल अपने विरुद्ध खड़े ताकतवर प्रत्याशियों को कमजोर करने या रास्ते से हटाने का प्रयास करता देखा जाता है, इसलिए रिश्वत मामले में हुई गिरफ्तारी और गुजरात में नामांकन वापस लेने वाले मामले की निष्पक्ष जांच होनी और सच्चाई सामने आनी ही चाहिए।