मतदाताओं की सुविधा-असुविधा का खयाल रख कर अगर चुनाव की तारीखें तय की जाती हैं, तो उस पर किसी को आपत्ति नहीं होगी, मगर इसके पीछे कोई मजबूत कारण न हो तो यह शक का आधार बनने लगता है। उत्तर प्रदेश, पंजाब और केरल विधानसभा की चौदह सीटों के लिए होने वाले उपचुनावों के लिए निर्वाचन आयोग ने तय तारीखें बदल कर नई तारीख बीस नवंबर निर्धारित कर दी है। कुछ पर्व-त्योहारों के मद्देनजर मतदान के कार्यक्रम में इस बदलाव के लिए कुछ राजनीतिक पार्टियों की ओर से मांग की गई थी।

चुनाव की आई नई तारीख

बताया जा रहा है कि पहले निर्धारित तिथि पर लोगों को असुविधा होती और मतदान पर इसका असर पड़ता। जो हो, अब नई तारीख तय होने के बाद उम्मीद की जानी चाहिए कि उस दिन संपन्न होने वाले मतदान को लेकर सभी पक्ष संतुष्ट होंगे और किसी तरह के सवाल नहीं उठेंगे।

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सवाल है कि पहले जब चुनाव आयोग ने मतदान की तारीखें तय की थी, तब क्या उसे उस दौरान पड़ने वाले त्योहारों और उसकी वजह से मतदाताओं को होने वाली असुविधा का खयाल नहीं आया था! फिर, जो चुनाव कार्यक्रम तय किए जाते हैं, उसमें पर्व-त्योहारों को ध्यान में रख कर बदलाव करने के मामले में क्या समदृष्टि का उपयोग किया जाता है? उत्तर प्रदेश, पंजाब या केरल जैसे राज्यों में चुनाव के दौरान अगर कुछ पर्व-त्योहार आ रहे थे, तो यह कोई नई और अचानक पैदा होने वाली बाधा नहीं थी। निर्वाचन आयोग की ओर से जब चुनाव प्रक्रिया और मतदान की तारीखों का निर्धारण किया जाता है, तो इन पहलुओं का ध्यान पहले ही रखा जाता है।

पक्षपात सहित उठे कई सवाल

विडंबना है कि इन उपचुनावों की घोषणा के बाद तय दिनों में मतदाताओं की असुविधा और मतदान पर पड़ने वाले असर की दलील पर कार्यक्रम में फेरबदल किया गया। हाल के वर्षों में चुनाव प्रक्रिया से लेकर परिणाम घोषित होने तक के मामले में पक्षपात सहित कई तरह के सवाल उठते रहे हैं। अब अगर मतदान की तारीखों में भी फेरबदल को लेकर इस तरह के ऊहापोह दिखने शुरू होंगे तो आम लोगों में चुनावों को लेकर भरोसा पैदा करना मुश्किल होगा।