भारत निर्वाचन आयोग लगातार विवादों में है। पिछले कुछ वर्षों में उसकी निष्पक्षता पर अनेक बार सवाल उठे हैं। जिस प्रकार के आरोप उस पर लगते रहे हैं, वह देश की लोकतांत्रिक प्रक्रिया के लिए ठीक नहीं है। आयोग ईवीएम से जुड़ीं शिकायतें आज तक दूर नहीं कर सका है। गौरतलब है कि वर्तमान मुख्य निर्वाचन आयुक्त अगली अठारह फरवरी को सेवानिवृत्त होने वाले हैं। अब नई नियुक्ति केंद्र की ओर से वर्ष 2023 में लाए गए नए कानून के तहत हो सकती है। इस पर भी सवाल उठे हैं।
इस मुद्दे पर शीर्ष न्यायालय का कड़ा रुख दिख रहा है। उसने इस संबंध में दायर याचिकाओं पर सुनवाई की तारीख तय करते हुए स्पष्ट कर दिया है कि इस बीच कुछ भी घटित होता है, तो उसके परिणाम अवश्य भुगतने होंगे। सुप्रीम कोर्ट ने सुझाया था कि चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति प्रधानमंत्री, प्रधान न्यायाधीश और नेता प्रतिपक्ष की स्वतंत्र समिति करे, पर सरकार ने समिति से प्रधान न्यायाधीश को हटा दिया और उनकी जगह किसी मंत्री को सदस्य बना दिया। यह चुनावी लोकतंत्र के विरुद्ध माना गया। अब चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति केंद्र की इच्छा पर निर्भर हो गई है। विरोध इसी बात का है।
स्वस्थ लोकतंत्र के लिए उचित नहीं
चुनाव आयोग की कार्यप्रणाली से नागरिकों का जिस तरह भरोसा कमजोर हुआ है, वह स्वस्थ लोकतंत्र के लिए उचित नहीं कहा जा सकता। दागी नेता आज भी चुनाव लड़ रहे हैं, लेकिन आयोग उन्हें रोक नहीं पा रहा। वहीं आचार संहिता के उल्लंघन पर कार्रवाई में उसकी निष्पक्षता संदिग्ध दिखती है। मतदाता सूची में गड़बड़ी के भी गंभीर आरोप हैं। वह चाहे जितनी दलीलें दे, लेकिन हकीकत है कि कई राजनीतिक दल और मतदाता ईवीएम से संतुष्ट नहीं हैं।
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आयोग ईवीएम में संग्रहीत आंकड़े बताने तक से इनकार करता रहा है। अब सुप्रीम कोर्ट ने आयोग से कहा है कि ईवीएम में संग्रहीत आंकड़ों को न हटाया जाए। दरअसल, हरियाणा कांग्रेस के नेताओं ने याचिका दायर की है कि जली हुई ईवीएम की ‘मेमोरी’ और ‘माइक्रोकंट्रोलर’ को इंजीनियर से सत्यापित किया जाए कि ईवीएम से छेड़छाड़ नहीं हुई है। मगर यहां सवाल सत्यापन से अधिक संदेह का है। आरोपों से घिरे आयोग को जवाब देना ही होगा।